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कोटा में शुगर फ्री आम की पैदावार हो रही है। अगर किसी को आम खाने का शौक है तो वह कोटा के इन खास आम का जायका ले सकता है। लाल रंग के इस आम में मिठास कम होती है, लेकिन स्वाद के मामले में यह अपनी दूसरी किस्मों से कम नहीं है।
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कोटा जिले में कैथून बाईपास के करीब मोतीपुरा गांव में थर्मल पावर प्लांट, सूरतगढ़ (श्रीगंगानगर) से रिटायर्ड इंजीनियर किसान ओमप्रकाश शर्मा (70) टॉमी एटकिंस समेत 8 किस्मों के आम की खेती कर रहे हैं। टॉमी एटकिंस सामान्य आम से साइज में बड़ा और लाल रंग का होता है। देश में कुछ ही फार्म पर ही इसकी खेती हो रही है।
म्हारे देस की खेती में आज बात कोटा के रिटायर्ड इंजीनियर किसान ओमप्रकाश शर्मा की…
कोटा के जवाहर नगर में रहने वाले ओमप्रकाश शर्मा 10 साल पहले 2013 में थर्मल पावर प्लांट, सूरतगढ़ में चीफ इंजीनियर पद से रिटायर हुए। रिटायरमेंट के बाद अपने घर कोटा आने के बाद उन्होंने 3 साल यानी 2016 तक नेत्र रोग विशेषज्ञ बेटे डॉ. दीपक शर्मा के हॉस्पिटल का मैनेजमेंट संभाला। वहां करने को ज्यादा कुछ नहीं था। आम खाने का शौक बचपन से था। सूरतगढ़ में थर्मल पावर प्लांट के क्वार्टर में भी आम के पेड़ लगाए थे। ऐसे में कोटा में पुश्तैनी जमीन पर खेती करने का विचार आया।
रिटायर्ड इंजीनियर ओमप्रकाश शर्मा ने आठ साल पहले कोटा में आम का बगीचा लगाया था।
ओमप्रकाश शर्मा ने बताया- जवाहर नगर कॉलोनी से 15 किलोमीटर दूर मोतीपुरा गांव में 22 बीघा पुश्तैनी जमीन है। थर्मल पावर प्लांट में 36 साल तक नौकरी की। तब ये खेत बंटाई या लीज पर देता था। 2016 में इसी जमीन पर 10 बीघा में बगीचा लगाने का फैसला किया।
2016 में मैं उत्तर प्रदेश में लखनऊ शहर के पास मलिहाबाद गया। वहां पद्मश्री कलीमुल्लाह से मिला। उन्होंने एक ही पेड़ पर ग्राफ्टिंग कर 350 वैरायटी के आम उगाए थे। उनसे काफी कुछ सीखा। वहां से मल्लिका, लंगड़ा, दशहरी, चौसा और आम्रपाली किस्म के पौधे लाया। ये पौधे अपने फार्म हाउस में 5 बीघा के खेत में लगाए।
अच्छी ग्रोथ मिली तो ज्यादा पेड़ लगाने का विचार आया। मैं अधिकतर समय खेत पर बिताने लगा। मजदूरों के साथ खुद भी घंटों मेहनत करता था। साल 2017 में महाराष्ट्र के जलगांव गया। वहां जैन इरिगेशन कंपनी से केसर और स्वर्णरेखा किस्म के पौधे खरीदे। इन पौधों को 5 बीघा जमीन में लगा दिया। इनमें गलती से अमेरिकन वैरायटी के टॉमी एटकिंस और तोतापुरी आम के पौधे भी आ गए। जब एक साल बाद पेड़ों पर लाल-जामुनी रंग के आम लगे तो वैरायटी का पता लगा। इस तरह टॉमी एटकिंस के पौधे कोटा में पनपे और अब शुगर फ्री आम का प्रोडक्शन मिल रहा है।
इस तरह कुल 10 बीघा में 8 वैरायटी के 750 पेड़ लगाए। इनमें लंगड़ा, दशहरी, आम्रपाली, मल्लिका, चौसा, स्वर्ण रेखा, केसर और टॉमी एटकिंस हैं। पूरे बाग को ड्रिप इरिगेशन सिस्टम से जोड़ा। बाग में 150 पौधे जल गए या फिर कीट का शिकार हो गए। 600 पौधे पनपे। बाद में ग्रीन हाउस में मैंने मदर प्लांट तैयार करना शुरू किया। अब तक 800 पौधे तैयार कर चुका हूं। इनमें से 200 को ग्रीन हाउस से बगीचे में शिफ्ट कर दिया है। अब आम के पेड़ों की संख्या करीब 750 है। मदर प्लांट में 700 से ज्यादा पौधे तैयार हैं, जिनके लिए किसानों के ऑर्डर आने लगे हैं।
उन्होंने कहा- बगीचे की देखभाल मैं खुद करता हूं। सीजन में रोजाना सुबह 8 बजे टिफिन लेकर घर से निकलता हूं और शाम 7 बजे तक घर लौटता हूं। फार्म हाउस पर 2 परमानेंट कर्मचारी हैं। सफाई-तुड़ाई के वक्त आसपास के गांव से लेबर उपलब्ध हो जाती है। सीजन में 20 लोग काम करते हैं।
टॉमी एटकिंस आम का छिलका लाल रंग का होता है। इसमें शुगर की मात्रा बहुत कम होने के कारण इसे शुगर फ्री कहा जाता है।
यहां मिलता है शुगर फ्री टॉमी एटकिंस आम
किसान ओमप्रकाश शर्मा ने बताया- टॉमी एटकिंस आम के पेड़ों का यहां पनपना बड़ी सफलता है। डायबिटीज से पीड़ित लोगों के लिए यह शुगर फ्री आम है। देश के बहुत कम फार्म पर इस वैरायटी के आम हैं। यह अमेरिकी किस्म है। फ्लोरिडा (अमेरिका) में इसकी अच्छी-खासी पैदावार होती है। इसका उत्पादन सबसे पहले 1920 के दशक में फ्लोरिडा के फोर्ट लॉडरडेल में हुआ था। इसमें देसी आम के मुकाबले 70 फीसदी तक शुगर कम होती है।
इस आम का साइज बड़ा होता है। यह चमकीला हरा और गहरे लाल या जामुनी रंग का रेशेदार फल है। पेड़ पर यह मार्च से जुलाई और सितंबर से अक्टूबर तक लगता है। अब ग्राफ्टिंग से इसकी किस्म के पौधे तैयार कर लिए हैं। इसके पेड़ पर सीजन के काफी बाद तक फल आते हैं।
जब आम का फार्म तैयार किया तो उस समय टॉमी एटकिंस के 5 पेड़ थे। इनमें से 3 खराब हो गए। दो पौधे ही पेड़ बन सके। अब इन दोनों से आम का प्रोडक्शन मिल रहा है। अगले सीजन में ग्राफ्टेड पौधे तैयार हो जाएंगे।
आम्रपाली और मल्लिका किस्म भी लोगों की पसंद
ओमप्रकाश ने बताया- आम्रपाली और मल्लिका किस्म के आम की भी कोटा में काफी डिमांड है। अन्य किस्म के आम आसानी से बाजार में मिल जाते हैं। ऐसे में आम्रपाली और मल्लिका के लिए लोग सीधे हमारे फार्म हाउस आते हैं। आम्रपाली की अच्छी पैदावार हो रही है।
मल्लिका वैरायटी का आम भी बाजार में देर से आता है। यह फल सितंबर तक भी मार्केट में मिलता है। इसकी ज्यादा खेती बेंगलुरु (कर्नाटक) में होती है। यह आकार में बड़ा होता है। इसका वजन 500 ग्राम तक भी होता है।
आम के बगीचे में 8 वैरायटी के 750 से ज्यादा पेड़ हैं।
ग्राफ्टिंग से मदर प्लांट तैयार किए
ओमप्रकाश शर्मा ने बताया- आम की अलग-अलग वैरायटी के पौधे लगाने के बाद किसान चैनल और यूट्यूब से ग्राफ्टिंग सीखी। फार्म में ही ग्रीन हाउस लगाया और ग्राफ्टिंग से पौधे तैयार करना शुरू किया। ग्राफ्टिंग से मदर प्लांट तैयार किए। विभिन्न किस्मों की ग्राफ्टिंग जारी है। आसपास के किसानों से पौधों की डिमांड आ रही है।
पूरी तरह से जैविक तकनीक का इस्तेमाल
किसान ओमप्रकाश ने बताया- पौधों में गोबर खाद का ही उपयोग करता हूं। आम को पेड़ पर ही पकने के बाद तोड़ा जाता है। इससे नैचुरल मिठास बनी रहती है। किसानों को जैविक खेती के फायदे बताता हूं। राजस्थान में पूरी तरह से जैविक तरीके से तैयार आम का यह पहला फार्म हाउस है। यहां किसी भी तरह के केमिकल का इस्तेमाल किसी भी प्रोसेस में नहीं किया जाता। ऑर्गेनिक दवाएं इस्तेमाल करता हूं। जैविक कीटनाशक स्प्रे और खाद खुद तैयार करता हूं।
सीजन में रोजाना 1000 किलो आम की सप्लाई
ओमप्रकाश शर्मा ने बताया- पेड़ों की ऊंचाई अभी 8 से 10 फीट है। ये पेड़ 20 से 25 फीट तक के हो जाएंगे। अभी शुरुआती चरण है। सीजन में एक पेड़ से 40 किलो तक आम का उत्पादन हो रहा है। अलग-अलग किस्म की उत्पादन क्षमता अलग होती है। सीजन में रोजाना 1000 किलो तक आम सप्लाई होता है। दशहरी और लंगड़ा आम का भाव 80 रुपए प्रति किलो मिल रहा है। इसके अलावा आम्रपाली, मल्लिका, टॉमी एटकिंस 100 से 120 रुपए किलो तक बिक रहा है।
मैं मंडी में फलों की सप्लाई नहीं करता। मंडीवालों ने संपर्क किया था, लेकिन व्यापारियों ने 30 से 40 रुपए प्रति किलो का रेट लगाया। इसमें भी वे बिना पके फलों की डिमांड कर रहे थे ताकि केमिकल से पका कर बेच सकें।
मैं चाहता हूं कि लोगों को पेड़ की शाखा पर पके नैचुरल आम का स्वाद मिले। उसमें केमिकल की मिलावट न हो। शुरुआत में परिचितों को आम के बागान की जानकारी मिली। धीरे-धीरे लोगों को पता चला। अब हर सीजन में पहले से ही मेरे पास ऑर्डर आ रहे हैं।
ओमप्रकाश शर्मा के बगीचे में लगे आम। पेड़ अभी छोटे हैं। कुछ साल में ये घने पेड़ बन जाएंगे।
पेड़ से शुरुआती 5-6 साल नहीं लेते फल
किसान ओमप्रकाश ने बताया- पौधों को 12 महीने सहेजना पड़ता है, तब गर्मी में फल आता है। समय-समय पर ट्रिमिंग करते हैं। दवा छिड़कते हैं। खाद देते हैं। फूल आते हैं तो पानी (सिंचाई) रोकना पड़ता है ताकि फल बने। फल बनने के बाद सिंचाई की जाती है। सभी ग्राफ्टेड पौधे एक साल में फल देने लगते हैं। लेकिन, पांच-छह साल हम फल नहीं लेते। इससे बाद में पौधे में अच्छी फ्रूटिंग आती है और अच्छा पेड़ विकसित होता है।
परिवार में पत्नी, बेटा और बेटी हैं। बेटा डॉक्टर है। फार्म हाउस पर दो कर्मचारी परमानेंट हैं। सफाई, कटाई और तुड़ाई के वक्त आसपास के गांव से दिहाड़ी मजदूर मिल जाते हैं। सीजन में 20 लोग फार्म पर काम करते हैं।
ओमप्रकाश शर्मा पूरी तरह से जैविक बागवानी खेती कर रहे हैं। एक प्रतिशत भी केमिकल का इस्तेमाल नहीं करते।
उन्होंने बताया- एग्रीकल्चर में सोशल मीडिया का उपयोग किया। फार्म हाउस पर छोटा ट्रैक्टर, रोटावेयर और अन्य मशीनें हैं। जैविक कीटनाशक को ड्रिप इरिगेशन से पौधों तक पहुंचाता हूं। यह सब किसान टीवी और सोशल मीडिया देखकर सीखा है। कहीं कमी दिखती है तो इंटरनेट पर समाधान खोज लेता हूं।
पहले जैविक खाद एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी कोटा से खरीदता था। फिर यूनिवर्सिटी से केंचुए खरीदे और अपना ग्रीन हाउस बनाकर खुद खाद बनाना शुरू किया। अब हजारों किलो खाद तैयार करता हूं। लिक्विड खाद भी केंचुए और गोबर से बनाता हूं।
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