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मेरा शरीर जैसा है वैसा ही रहने दीजिए। मुझे दूसरे की तो क्या अपनी मां और बहन की किडनी भी नहीं चाहिए। मेरे कारण क्यों किसी का शरीर खराब करना। मैं नहीं चाहता कि मेरे कारण किसी को तकलीफ हो। यह कहना था 22 वर्षीय ब्रेन डेड युवक आयुष पंजाबी का। युवक के परिज
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आज 3 अगस्त को ‘नेशनल वर्ल्ड आर्गन डोनेशन डे’ पर यह कहानी पागनीस पागा निवासी व्यवसायी राजेश पंजाबी के इकलौते बेटे आयुष की है…
18 जुलाई को ब्रेन हेमरेज के कारण आयुष को एक प्राइवेट हॉस्पिटल में एडमिट किया गया। 21 जुलाई को डॉक्टरों की टीम ने उसे ब्रेन डेड घोषित कर दिया। 22 जुलाई को उसके हार्ट, लिवर, लंग्स, आंखें, त्वचा, हाथ डोनेट करने के बाद उसकी देह भी दान की जानी थी। परीक्षण में हार्ट, हाथ और देह तकनीकी कारणों के चलते डोनेट नहीं की जा सकी। उसका लिवर इंदौर में ही एक मरीज को और लंग्स चेन्नई के बुजुर्ग मरीज को ट्रांसप्लांट किए गए।
आयुष बीबीए का छात्र था। परिवार में पिता, मां सिमरन, दादी सुनीता, बड़ी बहन मुस्कान हैं। मुस्कान की शादी हो चुकी है जो मुंबई में रहती है। आयुष करीब दो साल से किडनी की बीमारी से जूझ रहा था। डॉक्टरों ने जांच के बाद बताया कि उसे ऑटोइम्यून नामक बीमारी थी। इस बीमारी के कारण शरीर में एंटीबॉडी कमजोर हो जाती है, और किडनी खराब होने लगती है। उसकी एक किडनी सिकुड़ गई थी जबकि दूसरी किडनी में क्रिएटिनिन बढ़ने लगा था। इसके चलते उसे तकलीफ शुरू हो गई थी।
परिवार के साथ आयुष (सबसे दाएं चश्मे में)।
मां सिमरन बताती है, कि उसे बीपी, शुगर या अन्य कोई बीमारी नहीं थी। कोई बुरी आदत भी नहीं थी। वह सेवा भावी प्रवृत्ति का था। जब उसे किडनी की तकलीफ शुरू हुई तो उसने ऐलोपैथिक के इलाज से मना कर दिया। दरअसल उसे एलोपैथिक से ज्यादा होम्योपैथिक पर भरोसा रहा। बचपन में भी जरा सी सर्दी-खांसी होना पर उसका होम्योपैथिक इलाज ही चलता था। उसी से उसे आराम भी मिल जाता। कुछ माह पहले जब उसकी जांचें कराई तो क्रिएटिनिन फिर बढ़ा हुआ आया।
इस पर परिवार के काफी कहने पर अलग-अलग डॉक्टरों को बताया। उन्होंने कहा कि अब जल्द ही उसे डायलिसिस की जरूरत पड़ेगी। यह भी बताया कि डायलिसिस नहीं कराने पर हालत और खराब हो सकती है, लेकिन वह सहमत नहीं था। बुआ कंचन पोरवाल के मुताबिक उसे हर फील्ड का काफी नॉलेज था और अक्सर कुछ न कुछ रिसर्च में लगा रहता था।
इंटरनेट पर डायलिसिस मरीजों की हालत पर की थी स्टडी
परिवार के मुताबिक वह इंटरनेट पर अकसर यह सर्च करता था कि शरीर में किस चीज या दवाई का क्या असर होता है। उसने इंदौर से लेकर देश-विदेश तक होम्योपैथी में किडनी के इलाज की भी जानकारी ली थी। उसका होम्योपैथी का इलाज इंदौर में ही चल रहा था। उसे कई होम्योपैथी और आयुर्वेदिक डॉक्टरों ने भी जब डायलिसिस की सलाह दी लेकिन राजी नहीं हुआ। उसने इंटरनेट पर डायलिसिस तो लेकर काफी अध्ययन किया था। इसके साथ ही परिवार को भी कहा कि डायलिसिस से शरीर को काफी तकलीफ होती है। इससे तो होम्योपैथी ही ठीक है।
जितनी जिंदगी दी होगी, वही मंजूर
परिवार ने बताया कि हमने डॉक्टरों को स्थिति बताई तो उन्होंने दूसरे विकल्प के रूप में किडनी ट्रांसप्लांट के बारे में बताया। परिवार ने इसके लिए रजिस्ट्रेशन कराने की पहल की तो भी उसने इनकार कर दिया। उसका कहना था मेरे कारण क्यों किसी के शरीर तकलीफ हो। इस पर मां, बहन सहित सभी ने अपनी किडनी देने की बात कही। लेकिन इस पर भी वह राजी नहीं हुआ।
उसने वही बात दोहराई कि मैं अपने कारण किसी को तकलीफ देना नहीं चाहता। परमात्मा ने मुझे जितनी स्वाभाविक जिंदगी दी होगी, वही मंजूर है। 18 जुलाई को उसे सिरदर्द होने लगा और कुछ देर बाद बेहोश हो गया। परिजन उसे एक प्राइवेट हॉस्पिटल ले गए जहां पता चला कि ब्रेन हेमरेज हो गया है। इसके बाद 21 जुलाई को उसे ब्रेन डेड घोषित किया गया।
बहन मुस्कान और रिश्तेदार लवीना के साथ आयुष।
रिसर्च ओरिएंटेड माइंड
मां सिमरन के मुताबिक जब होम्योपैथी का इलाज चल रहा था तो उसे कोई तकलीफ नहीं होती थी। उसे यूरिन भी पास होती थी और उल्टियां भी नहीं होती थी। भोजन भी करता था। उसका कहना था कि मुझे कुछ तकलीफ ही नहीं है तो मैं डायलिसिस क्यों कराऊं। क्रिएटिनिन बढ़ने पर उसे एलोपैथिक का इलाज कराने को कहते थे तो मना कर देता था। बुआ कंचन ने बताया कि वह रिसर्च ओरिएंटेड था। उसे रिसर्च में पता चला था कि आगे जाकर स्टेराइड लेना पड़ सकता है। होम्योपैथिक दवाई भी का क्या प्रभाव रहेगा, यह भी जानकारी निकालने के बाद ही लेता था। अपनी विचारधारा पर वह आखिरी तक कायम रहा और चल बसा।
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