[ad_1]
Iran vs America: पिछले कुछ दशकों में ईरान और अमेरिका के बीच संबंधों में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं, जिनमें सहयोग, तनाव और पूर्ण शत्रुता का दौर शामिल हैं. ताजा तनाव की वजह ईरान के पास अमेरिकी सैन्य तैनाती है. यह तनाव उस समय और बढ़ गया जब इजरायल ने हमास के राजनीतिक ब्यूरो के चीफ इस्माइल हानिया को ईरान में मार गिराया. प्रतिक्रिया में ईरान ने इजरायल को बदला लेने की धमकी दी है. नतीजा यह हुआ कि ईरान-इजरायल और उनके सहयोगियों के बीच संघर्ष के आसार नजर आने लगे. तो ईरानी कार्रवाईयों के बढ़ते खतरों के जवाब में अमेरिका ने क्षेत्र में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ा दी.
अगर ईरान और अमेरिका के बीच दुश्मनी की वजह को समझना है तो इतिहास में थोड़ा पीछे जाना होगा. ईरान के अमेरिका के साथ राजनयिक संबंध 19वीं सदी के अंत में शुरू हुए जब ईरान ने ब्रिटिश और रूसी प्रभाव का मुकाबला करने की कोशिश की. इसमें सांस्कृतिक और आर्थिक आदान-प्रदान शामिल था, जिसमें अमेरिका ने ईरान के आधुनिकीकरण प्रयासों का समर्थन किया था. लेकिन साल 1953 में अमेरिका और ब्रिटेन ने ईरान के लोकतांत्रिक रूप से चुने गए प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसादेग को उखाड़ फेंकने के लिए तख्तापलट किया था. मोहम्मद मोसादेग ने तेल उद्योग का राष्ट्रीयकरण किया था. इस घटना ने शाह मोहम्मद रजा पहलवी को ईरान की गद्दी पर बहाल कर दिया, जिससे ईरानियों में अपने घरेलू मामलों में अमेरिकी हस्तक्षेप के प्रति व्यापक आक्रोश फैल गया. मोहम्मद रजा पहलवी को अमेरिका समर्थक माना जाता रहा.
ये भी पढ़ें- ईरान और इजरायल के बीच छिड़ जाए जंग तो किसका रहेगा पलड़ा भारी, दोनों में कौन ज्यादा ताकतवर?
इस्लामी क्रांति ने बदले हालात
लेकिन फिर आया वो दौर जिसके बाद ईरान ने अमेरिका को अपना दुश्मन नंबर एक घोषित कर दिया. साल 1979 में ईरान में इस्लामी क्रांति हुई, जिसके बाद अमेरिका परस्त शाह को अपदस्थ कर दिया गया. लेकिन अमेरिका ने शाह को राजनीतिक शरण दी. जिसके कारण तेहरान में अमेरिकी दूतावास पर हमला हुआ और 52 अमेरिकी बंधकों को 444 दिनों के लिए बंधक बना लिया गया. इस घटना ने ईरान को हमेशा के लिए अमेरिका का दुश्मन बना दिया. बंधक संकट के बाद अमेरिका ने राजनयिक संबंध तोड़ दिए. उस समय ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खुमैनी ने अमेरिका को ‘महान शैतान’ करार दिया.
वैचारिक मतभेद भी वजह
दरअसल ईरान का इस्लामी गणतंत्र एक क्रांतिकारी विचारधारा पर आधारित है जो पश्चिमी प्रभाव का विरोध करता है. विशेषकर अमेरिका का जिसे वह एक साम्राज्यवादी शक्ति के रूप में देखता है. ईरानी नेता अक्सर अमेरिका के खिलाफ अपनी बयानबाजी को ‘अहंकारी शक्तियों’ के खिलाफ व्यापक संघर्ष के हिस्से के रूप में पेश करते हैं जो ईरान की संप्रभुता और क्षेत्रीय प्रभाव को कमजोर करना चाहते हैं. 1980 और 1990 के दशक के दौरान, अमेरिका ने ईरान पर विभिन्न प्रतिबंध लगाए. मुख्य रूप से आतंकवाद के समर्थन और उसकी परमाणु महत्वाकांक्षाओं के कारण. इस अवधि में ईरान को अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अलग-थलग होते देखा गया, जिससे उससे अपनी सैन्य क्षमताओं को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित किया.
ये भी पढ़ें- आखिर क्यों नागालैंड और अरुणाचल की नंबर प्लेट ले रही हैं गुजरात की बसें? क्या है वजह
ईरान देता है उग्रवादी समूहों को समर्थन
ईरान की क्षेत्रीय नीतियों और कार्रवाईयों ने इस दुश्मनी को और भी गहरा कर दिया है: उग्रवादी समूहों को समर्थन देना भी उनमें से एक है. ईरान हिजबुल्लाह और हमास जैसे समूहों का समर्थन करता है, जो क्षेत्र में अमेरिकी सहयोगियों, विशेषकर इजराइल के सीधे विरोध में हैं. अमेरिका इस समर्थन को अपने और अपने सहयोगियों के हितों के लिए अस्थिर करने वाला और खतरा मानता है.
ट्रम्प ने लगाए कड़े प्रतिबंध
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के कार्यकाल में रिश्ते फिर से तेजी से बिगड़ गए. ट्रम्प ईरान पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए. यह कदम ईरान की क्षेत्रीय गतिविधियों और उसके मिसाइल कार्यक्रम पर चिंताओं से प्रभावित था, जिससे शत्रुता और बढ़ गई और क्षेत्र में सैन्य टकराव हुआ. अमेरिका ईरान के परमाणु कार्यक्रम को प्रत्यक्ष खतरे के रूप में देखता है, जिससे प्रतिबंध और सैन्य रुख कड़ा हो सकता है. परमाणु-सम्पन्न ईरान का डर अमेरिकी विदेश नीति का एक केंद्रीय विषय रहा है, जो प्रतिकूल संबंधों को मजबूत करता है.
ये भी पढ़ें- कब कब प्रेग्नेंट खिलाड़ियों ने ओलंपिक में जीते पदक, घुड़सवारी जैसी इवेंट में भी दिखाया जलवा
अमेरिका की घरेलू राजनीति जिम्मेदार
अमेरिका में, घरेलू राजनीतिक विचार भी इस दुश्मनी को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इजरायल समर्थक लॉबिंग समूहों और सैन्य-औद्योगिक समूहों का प्रभाव अक्सर ऐसी नीतियों को आकार देता है जो राजनयिक जुड़ाव की संभावना की परवाह किए बिना, ईरान को एक प्रमुख प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखती हैं.
दुश्मनी का सिलसिला आज भी कायम
2023 तक, क्षेत्र में सैन्य तैनाती और जेसीपीओए को पुनर्जीवित करने के लिए चल रही बातचीत के कारण तनाव अधिक बना हुआ है. ईरान ने अमेरिकी प्रभाव को संतुलित करने और अपनी रणनीतिक स्थिति को मजबूत करने की कोशिश में रूस और चीन जैसे देशों के साथ अपने संबंधों को मजबूत किया है. कुल मिलाकर, ईरानी घरेलू राजनीति और अमेरिका की अपनी विदेश नीति के फैसलों से इस दुश्मनी को बल मिलता है. इसी से अविश्वास और शत्रुता आज भी कायम है. दोनों के बीच दुश्मनी साल 2019 में उस समय चरम पर पहुंच गई जब पेंटागन (अमेरिकी रक्षा मंत्रालय) ने हवाई हमले का आदेश दिया जिसमें ईरान के सबसे शक्तिशाली जनरल कासिम सुलेमानी की मौत हो गई.
Tags: America News, International news, Iran news, World news
FIRST PUBLISHED : August 2, 2024, 15:41 IST
[ad_2]
Source link