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20 अक्टूबर 2021 में हमारे परिवार में पहली बेटी जन्मी। हमने उसका नाम माहम रखा। लेकिन धीरे-धीरे वह कमजोर दिखने लगी। फिर उसके होंठों पर हल्का सा खून दिखने लगा। उसके शरीर पर काले और लाल धब्बे दिखने लगे। साथ ही उसे शौच में परेशानी होने लगी और ब्लड निकलने
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शुरू में तो चाइल्ड स्पेशलिस्ट का इलाज चला। लेकिन जब तकलीफ बढ़ने लगी तो डॉक्टरों ने एम्स, भोपाल रेफर कर दिया। वहां जांच कराने पर पता चला कि बच्ची को Congenital amegakaryocytic thrombocytopenia (CAMT) नामक बीमारी है। इसे बोन मैरो कहा जाता है।
बोन मैरो में इस तरह की बीमारी रेयर होती है। डॉक्टरों ने बताया कि बच्ची के प्लेटलेट्स नहीं बन रहे हैं। इसके चलते प्लेट्लेट्स के साथ बार-बार खून भी चढ़ाना पड़ेगा। यह भी बताया कि यह बीमारी जेनेटिक डिसऑर्डर के कारण होती है। साथ ही कैंसर में भी बदल सकती है। फिर मेरे और पत्नी के टेस्ट कराए गए। पता चला कि पत्नी के जीन्स के माध्यम से यह बीमारी बेटी में कैरी हुई है। हालांकि पत्नी को कभी कोई तकलीफ नहीं रही।
यह कहना है भोपाल निवासी दंपती रमीज राजा का। उन्होंने बताया कि इसके बाद उसका इलाज शुरू हुआ। डॉक्टरों ने हमें पहले ही बता दिया था कि इस बीमारी का इलाज काफी महंगा होता है। हमने पहले बच्ची का इलाज भोपाल के दो अस्पतालों में कराया।
इसके बाद दिल्ली, गुड़गांव, चंडीगढ में भी इलाज चला। इस दौरान हर पांच दिनों में उसे प्लेटलेट्स और 10 दिनों में ब्लड चढ़ाना पड़ता था। करीब नौ महीने तक उसका इलाज चलता रहा। इलाज में 10 लाख रुपए से ज्यादा खर्च हो चुके थे।
पेश से अकाउंटेट रमीज ने बताया कि इस बीच मुझे बैरागढ़ में परिचित डॉ. राकेश गुलानी ने जानकारी दी कि इंदौर में सरकारी सुपर स्पेशियलिटी में बोन मैरो का अच्छा इलाज होता है। हमें शुरू में सरकारी अस्पताल के नाम से भरोसा नहीं था।
लेकिन हम हर हाल में बच्ची का बेहतर इलाज चाहते थे। उसे 13 मार्च 2023 को यहां डॉक्टरों को दिखाया। यहां उसे 48 दिन तक एडमिट रखा। इस दौरान यहां भी उसे प्लेट्लेट्स और ब्लड चढ़ता रहा। इसके साथ ही दवाइयां भी चलती रही।
भोपाल निवासी माहम को इलाज के लिए 48 दिन तक इंदौर में एडमिट रखा गया।
पिता ने दिया बोन मैरो
इस दौरान डॉक्टरों ने बताया कि इसे बोन मैरो की अब जरूरत है। परिवार में से ही किसी को देना होगा। चूंकि मेरी जांच पहले ही हो चुकी थी इसलिए 1 अप्रैल को मेरा बोन मैरो (260 एमएम) लिया गया। यह ज्यादा इसलिए लिया गया ताकि अगर कोई सेल्स रिजेक्ट होते हैं तो रिजर्व भी रखा रहे।
…और स्वस्थ होने लगी मासूम
नतीजा यह हुआ कि बच्ची धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगी। उसके प्लेटलेट्स बनने लगे। होंठ और शौच में जो खून आता था वह बंद हो गया। शरीर के धब्बे भी गायब होने लगे। 17 अप्रैल 2023 को उसे आखिरी बार प्लेटलेट्स और ब्लड दिया गया। इसके बाद उसे जरूरत ही नहीं पड़ी।
इलाज के शुरुआती 48 दिनों तक वह एडमिट रही। फिर बीच-बीच में उस दौरान अस्पताल लाना पड़ता जब उसे प्लेटलेट्स या खून की जरूरत होती थी। करीब सवा साल तक उसका इलाज चला। अब उसकी बीमारी जड़ से ही खत्म हो गई है। उसकी सारी दवाइयां भी बंद हैं।
इंदौर में पूरा इलाज फ्री
रमीज के मुताबिक प्राइवेट अस्पतालों में इसका इलाज काफी महंगा है। हमने खुद इसके लिए 10 लाख रुपए से ज्यादा खर्च किए हैं। देर से ही सही हमें सही राह मिली कि सरकारी अस्पताल खासकर इंदौर में भी अच्छा और मुफ्त इलाज होता है।
यहां डॉ. प्रकाश सतलानी ने सही तरीके से गाइड किया। यहां मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री योजना, सीआरएस फंड से बच्ची का 5 लाख का इलाज फ्री में हुआ। हमें दवाइयां खरीदने की जरूरत भी नहीं पड़ी। हमारी बेटी की बीमारी जड़ से खत्म हो गई है, यही हमारे लिए सबसे बड़ा तोहफा है।
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