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Haryana Congress Politics: हरियाणा में अक्तूबर में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं लेकिन उससे पहले कांग्रेस के भीतर की गुटबाजी और कलह सतह पर आ गई है। पूर्व केंद्रीय मंत्री और सिरसा से सांसद कुमारी शैलजा ने शनिवार (27 जुलाई) को अंबाला से ‘कांग्रेस संदेश यात्रा’ शुरू करने की घोषणा की है। उनकी यह यात्रा विधानसभा चुनावों से पहले शहरी क्षेत्रों में पार्टी को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करेगी। बड़ी बात यह है कि यह यात्रा राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंदर सिंह हुड्डा और प्रदेश अध्यक्ष उदय भान द्वारा निकाली जा रही ‘हरियाणा मांगे हिसाब यात्रा’ से अलग है।
कुमारी शैलजा ने अपनी यात्रा का जो पोस्टर सोशल मीडिया पर पोस्ट किया है, वह पार्टी की अंदरूनी लड़ाई को और भी उजागर कर रही है क्योंकि उस पोस्टर पर ना तो भूपेंदर सिंह हुड्डा की तस्वीर है और न ही प्रदेश अध्यक्ष उदयभान की या राज्य प्रभारी दीपक बाबरिया की। शैलजा को पोस्टर में पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के साथ लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी की बड़ी तस्वीर है, जबकि शीर्ष पर पार्टी का चुनाव चिह्न के साथ महात्मा गांधी, अंबेडकर, सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी और पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल की तस्वीर लगाई गई है।
कुमारी शैलजा के गुट में तीन बड़े नेता है, इसकी झलक भी इसी पोस्टर में देखने को मिल रही है। पोस्टर में नीचे की ओर शैलजा के अलावा रणदीप सिंह सुरजेवाला और पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह की तस्वीर लगाई गई है। 27 जुलाई को शाम 4.30 बजे इस यात्रा का शुभारंभ अंबाला के अग्रसेन चौक से होगा, जो अगले दिन हिसार पहुंचेगी। 28 जुलाई को शैलजा हिसार के बरवाला में एक जनसभा को संबोधित करेंगी।
बता दें कि लोकसभा चुनावों के दौरान भी शैलजा ने संदेश यात्रा निकाली थी। तब उनके साथ सुरजेवाला के अलावा किरण चौधरी भी थीं, जो बोटी को टिकट महीं देने से नाराज होकर भाजपा में शामिल हो चुकी हैं। शैलजा ने तब राज्य की करीब 7-8 लोकसभा क्षेत्र को कवर किया था लेकिन रोहतक और सोनीपत को उन्होंने छोड़ दिया था। शैलजा तब लोकसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहती थीं लेकिन पार्टी ने उन्हें सिरसा से मैदान में उतार दिया, जहां से उन्होंने जीत दर्ज की है।
दलित समुदाय से आने वाली शैलजा की पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा से नहीं बनती है। शैलजा खुद को भी राज्य के मुख्यमंत्री के दावेदार के रूप में देखती हैं। यही वजह है कि दोनों नेताओं की बीच अक्सर तलवारें खिंचती रही हैं। 2019 में भी पार्टी ने हुड्डा के नेतृत्व में ही विधानसभा चुनाव लड़ा था, तब 90 सदस्यों वाली विधानसभा में पार्टी को 31 सीटों पर संतोष करना पड़ा था। सत्ताधारी भाजपा ने 40 सीटें जीती थीं, जिसे 10 सीटों वाली जजपा ने समर्थन दिया था और मनोहर लाल खट्टर दूसरी बार सरकार बना पाए थे। तब सात निर्दलीयों ने भी जीत दर्ज की थी।
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