[ad_1]
ऐप पर पढ़ें
Kargil Vijay Diwas: साल 1999 में कारगिल युद्ध में सैकड़ों भारतीय सैनिकों ने जान गंवाई, उनमें से एक वीर सपूत रांची का भी था। रांची के पिठोरिया निवासी नायब सूबेदार नागेश्वर महतो भी पाकिस्तानी सैनिकों से लोहा लेते हुए कारगिल की धरती पर शहीद हो गए। कारगिल युद्ध के 25 साल बाद भी शहीद नागेश्वर महतो की पत्नी संध्या देवी पति की तस्वीर को देख कर रो पड़ती हैं। उन्हें पति के खोने का गम तो है, पर उससे ज्यादा उन्हें फख्र है कि उनके पति नायब सूबेदार नागेश्वर महतो भारत माता की सेवा में खुद के प्राणों की आहुति दे दी।
शहीद नागेश्वर महतो के भाई भीम महतो ने बताया कि संयुक्त बिहार में रांची के पिठोरिया में नागेश्वर महतो का जन्म साल 1961 में हुआ था। परिवार में पांच भाई और एक बहन हैं। नागेश्वर बचपन से चंचल रहे, पढ़ाई में भी वे अच्छे थे। उनकी सेना में बहाली 29 अक्तूबर 1980 में हुई। 1999 में जब कारगिल में भारत पाकिस्तान युद्ध छिड़ा, उस समय नायब सूबेदार नागेश्वर महतो की ड्यूटी टेक्निकल स्टाफ के तौर पर थी। उन्हें बोफोर्स तोप की जिम्मेदारी दी गई थी।
परिजन बताते हैं कि लगातार गोलीबारी के बीच तोप की गड़बड़ियों को दुरुस्त करने की जिम्मेदारी नागेश्वर पर थी। जब वे युद्ध विराम के बीच तोप को ठीक कर रहे थे, तभी पाकिस्तान की ओर से ग्रेनेड फेंका गया। इस धमाके में ही नागेश्वर वीरगति को प्राप्त हो गए। नागेश्वर महतो के तीन पुत्र हैं। बड़े बेटे मुकेश ने बातचीत करने पर बताया कि उनके पिता के शहीद होने के बाद सरकार द्वारा आवंटित पेट्रोल पंप का संचालन करता है। दूसरे अभिषेक अमेरिका में चार्टर्ड अकाउंटेड है। जबकि छोटा बेटा आकाश पढ़ रहा है।
आश्वासन के बावजूद नहीं लग सकी प्रतिमा
शहीद नागेश्वर महतो के परिवारजनों के साथ पिठोरिया के ग्रामीणों की मांग है कि गांव में शहीद की प्रतिमा लगाई जाए। बेटा मुकेशने कहा कि गांव के प्रमुख चौक चौराहा पर पिताजी की प्रतिमा लगाने का आश्वसन मिला था, जो अब तक नहीं बना। ग्रामीण दीपक चौरसिया, सुजीत केशरी, अनिल केशरी ने कहा कि लंबे समय से गांव में शहीद नागेश्वर महतो की प्रतिमा लगाने की मांग सरकार से की जा रही है, लेकिन अब तक सरकार की ओर से पहल नहीं की गई है। सभी ने कहा कि शहीद नागेश्वर महतो की प्रतिमा पिठोरिया बाजार टांड़ स्थित उनके पैतृक मकान के सामने लगायी जाए। प्रतिमा देखकर आसपास इलाके के युवाओं में देश सेवा की प्रेरणा मिलेगी। वहीं, शहीद वीर सपूत की गौरव गाथा भावी पीढ़ियों को सर्वदा गौरवान्वित करती रहेगी।
पुल के साइन बोर्ड से मिटा शहीद का नाम
बेटा मुकेश कुमार महतो ने कहा कि तत्कालीन बिहार सरकार द्वारा कांके पतरातू मार्ग पर स्थित जुमार नदी पर बने पुल का नामकरण शहीद नागेश्वर सेतू किया गया था। पुल के दोनों ओर साइन बोर्ड लगाए गए थे, लेकिन समय के साथ साइन बोर्ड से नाम मिट गए। विडंबना है, देश सेवा में जान गंवाने वाला वीर सपूत का नाम दोबारा लिखवाने के लिए सरकार के स्तर से अबतक पहल नहीं की गई। हालांकि राजधानी रांची के वीआईपी मार्ग (धुर्वा से हरमू) के धुर्वा स्थित नागेश्वर फ्यूल सेंटर के पास शहीद के नाम पर पथ का नामकरण किया गया है। यहां रांची नगर निगम की ओर से शहीद के नाम का साइबोर्ड उनकी तस्वीर के साथ लगाया गया है।
[ad_2]
Source link