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धार में 26 साल के युवा किसान ने आधुनिक तरीके से लौकी की खेती शुरू की है। 6 बीघा में करीब 8 हजार 500 बेल लगाई हैं। अब तक 85 क्विंटल लौकी का उत्पादन ले चुके हैं। इसमें 50 हजार रुपए का मुनाफा हुआ है। अनुमान है कि अगले दो महीने में करीब 500 क्विंटल और लौ
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‘स्मार्ट किसान’ सीरीज में आपको मनावर के युवा किसान राज (बंटी) पाटीदार से मिलवाते हैं। राज के पास करीब 12 बीघा जमीन है। आधे में सिर्फ लौकी की खेती कर रहे हैं। बाकी में दूसरे फसलें उगा रहे हैं। 10 से 15 लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं। अब आसपास के किसान भी उनके पास जानकारी लेने पहुंचे रहे हैं।
राज के पास करीब 12 बीघा जमीन है। आधे में सिर्फ लौकी की खेती कर रहे हैं।
राज पाटीदार से जानते हैं, कैसे शुरू की खेती
‘मेरे दादा जी, पिता पारंपरिक खेती करते थे। कपास, गेहूं, चना, सरसों और सोयाबीन उगाते थे। इसमें बढ़ती लागत के साथ मुनाफा कम हो रहा था। फिर मैं BSc (एग्रीकल्चर) की पढ़ाई के दौरान खेती में कुछ नया करने के बारे में सोचने लगा। यूट्यूब और इंटरनेट के माध्यम से आधुनिक खेती के बारे में जानकारी जुटाई। इस दौरान महाराष्ट्र और गुजरात में सब्जी उगाने वाले बड़े किसानों से संपर्क किया। आधुनिक तरीके से जैविक खेती की ट्रेनिंग ली।
इंदौर के डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम विश्वविद्यालय BSc (एग्रीकल्चर) कर रहा था। इसी दौरान कोरोना में तबीयत खराब हो गई। मैं घर आ गया। दो साल तक ही पढ़ाई कर पाया। ग्रेजुएशन कंप्लीट नहीं हो पाया। हालांकि दो साल की पढ़ाई भी आधुनिक खेती-किसान में काम आ रही है।
इसी साल मई महीने में 6 बीघा में हरुणा कंपनी से बीज मंगवाकर लगाए। फिर खेत में बांस के खंभों पर लोहे के तार बांधे। लोहे के तार पर लौकी लटकने से खराब नहीं होती। चमक भी बरकरार रहती है। मंडी में भाव भी अच्छा मिलता है। वर्तमान में हर तीसरे दिन 5 से 7 क्विंटल तक लौकी निकल रही है, जिससे 15 से 20 हजार रुपए नकद मिल जाते हैं। खर्च काटकर एक क्विंटल पर एक हजार रुपए का मुनाफा हो जाता है। अगले दो महीने तक खेत से लौकी निकलेगी।
कम लागत में ज्यादा मुनाफा
खेत से निकलने वाली लौकी राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के मंडियों में जाती है। यहां अच्छा भाव मिलता है। इसके अलावा हाइजीनिक पैकिंग कर मॉल और बाजार में भी सप्लाई करते हैं। लौकी की खेती में कम लागत में ज्यादा मुनाफा मिलता है। औसतन एक एकड़ में 30 से 40 हजार की लागत आती है। वहीं, कमाई 70 से 80 हजार तक होती है।
जैविक खाद से मिट्टी की उर्वरक क्षमता बनी रहती है
अपने खेत में रासायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं करते। जैविक खाद, गोबर और गौमृत का उपयोग करता हूं। इससे मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने में मदद मिलती है। कीटों की रोकथाम के लिए भी उपयोगी मानी जाती है। साथ ही, बीमारियां दूर रहती हैं। खेत में तीन-तीन फीट पर बीज लगाए। ड्रिप इरिगेशन के जरिए सिंचाई करते हैं। इससे खरपतवार और पौधों में बीमारी लगने की आशंका कम रहती है।
ऐसे तैयार करें खेत
पहले खेतों की जुताई करें। एक-दो बार प्लाऊ जरूर चलाएं। हैरो (कृषि उपकरण) की मदद से मिट्टी को महीन बना दें। मशीन से खेतों की बेड तैयार करें। इसके बाद हरी खाद, गोबर की खाद, डीएपी का डोज तैयार कर खेत में डालें। प्लास्टिक मल्चिंग तैयार करें। ड्रिप इरिगेशन विधि से सिंचाई करें।
नर्सरी के पौधे देते हैं अच्छी उपज
नर्सरी के पौधे सामान्य पौधों से ज्यादा उपज देते हैं। नर्सरी के लिए सीजन के अनुसार बीज का चयन करें। हो सके तो कृषि वैज्ञानिकों की सलाह लें। अच्छे अंकुरण के लिए खेत में नमी की कमी न होने दें। गर्मियों में जब तक बीज अंकुरित न हो जाए, तब तक रोजाना फव्वारे से सिंचाई करें। लौकी को डेढ़ से दो फीट की दूरी पर लगाएं।
डंठल के साथ करें तुड़ाई
लौकी की बीजों की खेत में रोपाई के करीब 50 से 55 दिनों के बाद पैदावार शुरू हो जाती है। फल सही आकार और गहरा हरा रंग में दिखने लगे, तब तुड़ाई करना चाहिए। फलों की तुड़ाई डंठल के साथ करें। इससे फल कुछ समय तक ताजा बना रहता है। फलों की तुड़ाई के तुरंत बाद उन्हें पैक कर बाजार में बेचने के लिए भेज देना चाहिए।
लौकी के पौधों में लगने वाले रोग…
- सफेद मक्खी: यह छोटा सफेद कीट है, जो पौधे की कोमल पत्तियों का रस चूसकर उन्हें कमजोर बना देता है। यह मक्खी विषाणु भी फैलाती है। इससे बचाने के लिए इमिडाक्लोरोपिड 1 मिली. प्रति 15 लीटर पानी में घोल बनाकर स्प्रे करते हैं।
- पत्ती खाने वाले कीड़े: फूल आने के समय हरे रंग के पत्ती खाने वाले कीड़ों का प्रकोप होता है। ये कीड़े दिन में पत्तियों के नीचे छिपे जाते हैं। रात में बाहर निकलकर पत्तियां खाते हैं। इन कीड़ों से बचाव के लिए प्रोफेक्स सुपर 1.5 मिली. प्रति 15 लीटर पानी में घोल बनाकर स्प्रे करें।
- फल सड़न रोग: इसमें छोटे फल सड़ने लगते हैं। साथ ही, बड़े होने पर काले रंग के दाग बन जाते हैं। इससे पैदावार में कमी हो जाती है। इससे बचाने के लिए मिराडोर 15 मिली. प्रति 15 लीटर पानी में घोल बनाकर 12 दिनों के अंतर पर स्प्रे करें।
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