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सांकेतिक तस्वीर
– फोटो : सोशल मीडिया
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ब्रह्मांड अनेक गूढ़ रहस्यों से भरा है। वैज्ञानिक धीरे धीरे इसकी परत खोल रहे हैं। इसी तरह की सफलता डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस, प्लैनिटेरी एंड एस्ट्रनामिकल साइंसेस एंड इंजीनियरिंग (स्पेस) के खगोलविद और आईआईटी कानपुर के प्रो. प्रशांत पाठक की टीम को मिली है। टीम ने एक ऐसे ग्रह की खोज की है तो एक तारे की परिक्रमा कर रहा है, जैसा कि पृथ्वी सूर्य के चक्कर लगाती है। पृथ्वी से इसकी दूरी 12 प्रकाश वर्ष की है। इसे सुपर जुपिटर ग्रह नाम दिया गया है। सुपर जुपिटर ग्रह यह नाम इसलिए दिया गया क्योंकि यह हमारे सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह जुपिटर से छह गुना अधिक बड़ा है। इस उपलब्धि को विज्ञान पत्रिका नेचर ने प्रकाशित किया गया है। इस खोज के बाद मालूम पड़ा कि हमारे सौर मंडल से परे ग्रहों की तुलना में उच्च धातु सामग्री और एक अलग से कार्बन से ऑक्सीजन अनुपात को इंगित करती है।
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आईआईटी के वैज्ञानिक प्रो. प्रशांत पाठक ने बताया कि सुपर जुपिटर तारे की परिक्रमा को 200 सालों में पूरा करता है। तारे की अत्यधिक चमक आमतौर पर एक्सोप्लैनेट की मंद रोशनी का पता लगाने में बाधा डालती है। टीम ने स्टारलाइट को ब्लॉक करने के लिए कोरोनग्राफ से लैस जेडब्ल्यूएसटी के एमआईआरआई कैमरे का इस्तेमाल किया। जिससे एक कृत्रिम ग्रहण बना, जिससे इस नए ग्रह की खोज में मदद मिली है।
प्रो. पाठक ने बताया कि यह काफी ठंडा ग्रह है और इसका तापमान -1 डिगी सेल्सियस है। इसकी कक्षा भी बहुत बड़ी है। पृथ्वी और सूर्य के बीच जितनी दूरी है उससे 28 गुना अधिक दूरी सुपर जुपिटर ग्रह और उस तारे की बीच की है। इस उपलब्धि से ग्रहों के निर्माण, वायुमंडलीय संरचना और सौर मंडल से परे जीवन की संभावना के बारे में समझ मिली है।
प्रो. स्पेस के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर जेम्स वेब टेलीस्कोप के माध्यम से अंतरिक्ष में उपस्थित आकृतियों पर अध्ययन किया जा रहा है। टीम को पृथ्वी के निकट पहला प्रत्यक्ष रूप से वाह्य ग्रह एप्सिलॉन इंड एबी मिला है। यह ग्रह के5वी प्रकार के तारे (जिसे एचडी 209100 के नाम से जाना जाता है) टेलीस्कोप से इस वाह्य ग्रह का चित्र भी लिया गया है।
आईआईटी निदेशक प्रो. मणींद्र अग्रवाल ने कहा कि यह खोज विशुद्ध रूप से मील का पत्थर साबित होगी। उन्होंने टीम को बधाई दी है।
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