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नई दिल्ली। प्रभात कुमार
सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की संविधान पीठ ने गुरुवार को महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा कि ‘राज्यों को खान एवं खनिज संपदा वाली जमीन पर कर लगाने की क्षमता एवं विधायी शक्तियां मौजूद है। संविधान पीठ ने बहुमत से पारित फैसले में कहा है कि केंद्रीय कानून यानी खान और खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम 1957 यानी एमएमडीआर अधिनियम राज्यों को खान एवं खनिज संपदा पर कर लगाने की शक्ति को सीमित नहीं करता है।
शीर्ष अदालत के इस फैसले से खान और खनिज संपदा से समृद्ध झारखंड, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश, ओडिश और उत्तर पूर्व के राज्यों को फायदा होगा। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 9 जजों की संविधान पीठ ने 8:1 के बहुमत से यह फैसला दिया है। फैसला सुनाते हुए मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि ‘इस मसले पर दो फैसले लिखे गए हैं, पहला फैसला उन्होंने स्वयं और पीठ में शामिल 7 अन्य जजों की ओर से लिखा है, जबकि दूसरा फैसला पीठ में शामिल न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने अपना अलग फैसला लिखा है। जस्टिस नागरत्ना ने अपने फैसले में अगल राह जाहिर की है। इस मामले में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति नागरत्ना के अलावा न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, अभय एस ओका, जेबी पारदीवाला, मनोज मिश्रा, उज्जल भुइयां, सतीश चंद्र शर्मा और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल हैं।
मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने अपना बहुमत का फैसला पढ़ते हुए कहा कि ‘खान और खनिज के बदले भुगतान की जाने वाली रॉयल्टी कर की प्रकृति में नहीं है क्योंकि यह खनन पट्टे के तहत पट्टेदार द्वारा भुगतान किया जाने वाला एक संविदात्मक (लीज) प्रतिफल है। फैसले में कहा गया है कि रॉयल्टी और डेड रेंट दोनों ही कर की विशेषताओं को पूरा नहीं करते हैं। पीठ ने कहा कि संविधान की सूची 2 की प्रविष्टि 50 के अंतर्गत संसद के पास खनिज अधिकारों पर कर लगाने का अधिकार नहीं है। मुख्य न्यायाधीश चंद्रदूड़ ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि सर्वोच्च न्यायालय की सात न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ द्वारा 1989 का वह निर्णय, जिसमें कहा गया था कि खान और खनिजों पर भुगतान की जाने वाली रॉयल्टी कर है, वह गलत है। इसके साथ ही, संविधान पीठ ने रॉयल्टी को कर मानने वाले इंडिया सीमेंट्स के मामले में 1989 में पारित निर्णय को रद्द कर दिया। मुख्य न्यायाधीश ने कहा है कि एमएमडीआरए अधिनयम 1957 राज्यों को खानों एवं खनिज विकास पर कर लगाने से नहीं रोकता है।
इसमें कहा गया है कि संविधान की संघ सूची 1 की प्रविष्टि 54 एक विनियामक प्रविष्टि है और ये विनियामक प्रविष्टियां कर प्रविष्टियों से अलग हैं। फैसले में कहा गया है कि सूची 1 की प्रविष्टि 54, एक सामान्य प्रविष्टि होने के कारण, संघ की कराधान की शक्ति को शामिल नहीं करती है, ऐसे में खनिज संपदा पर कर लगाने की विधायी शक्ति राज्यों के पास है। संविधान पीठ ने बहुमत के फैसले में कहा है कि एमएमडीआर अधिनियम में राज्य की कर लगाने की शक्तियों पर सीमा को सीमित करने का कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं है और इस कानून (एमएमडीआर अधिनियम) की धारा 9 के तहत रॉयल्टी कर की प्रकृति में नहीं है। पीठ ने कहा है कि जहां तक सूची 2 की प्रविष्टि 49 में ‘भूमि शब्द सभी प्रकार की भूमि को कवर करता है, ऐसे में खनिज संपदा से युक्त भूमि भी राज्य सूची में इस प्रविष्टि के तहत भूमि के विवरण के अंतर्गत आती है और इसलिए राज्य उन पर कर लगाने में सक्षम हैं। पीठ ने कहा है कि खनिज युक्त भूमि की उपज का उपयोग खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने के उपाय के रूप में किया जा सकता है। साथ ही कहा है कि खनिज मूल्य या खनिज उत्पादन का उपयोग खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने के उपाय के रूप में किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की उन दलीलों को ठुकरा दिया, जिसमें कहा गया था कि खान एवं खनिज संपदा पर कर लगाने के संबंध में केंद्र के पास सर्वोच्च शक्तियां हैं और इसके लिए राज्यों की विधायी शक्ति सीमित है।
जस्टिस बीवी नागरत्ना ने का फैसला
बहुमत के फैसले से अलग राय जाहिर करते हुए जस्टिस बीवी नागरत्ना ने अपने लिखे फैसले में कहा कि राज्यों के पास खानों और खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने की विधायी क्षमता नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि सूची 2 की प्रविष्टि 49 के अंतर्गत ‘भूमि में ‘खनिज युक्त भूमि शामिल नहीं होगी क्योंकि यह खनिज अधिकारों पर दोहरा कराधान होगा। उन्होंने कहा है कि यह मानना अनुचित होगा कि राज्यों के पास खनन पट्टे के पट्टाधारक द्वारा भुगतान की गई रॉयल्टी से अधिक कर लगाने का अधिकार है। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि राज्यों खनिजों पर कर लगाने की अनुमति देने से राष्ट्रीय संसाधन पर एकरूपता की कमी होगी और इससे राज्यों के बीच अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा बढ़ सकता है। उन्होंने अपने फैसले में कहा है कि इससे संघीय व्यवस्था भी खत्म हो सकता है।
फैसला कब से लागू होगा, इस पर अगले सप्ताह होगी सुनवाई
संविधान पीठ का फैसला पारित होने के बाद झारखंड और ओडिशा जैसे खनिज समृद्ध राज्यों ने शीर्ष अदालत से केंद्र सरकार द्वारा अब तक खदानों और खनिजों पर लगाए गए हजारों करोड़ रुपये के करों की वसूली पर फैसला करने का आग्रह किया था। राज्यों ने संविधान पीठ से केंद्र सरकार द्वारा अब तक खदानों और खनिज संपदा से वसूले गए करों की वापसी राज्यों को सुनिश्चित करने के लिए फैसले को पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू करने की मांग की। हालांकि, केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने राज्यों के इस दलीलों का कड़ा विरोध किया। मेहता ने पीठ से इस फैसले को आज की तारीख के बाद से प्रभावी बनाने का आग्रह किया। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 9 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने केंद्र और राज्यों से इस पहलू पर लिखित दलीलें दाखिल पेश करने का आदेश दिया। पीठ ने कहा कि फैसला कब से लागू किया जाए, इस बारे में 31 जुलाई को सुनवाई करने के बाद फैसला पारित किया जाएगा।
तेरह साल पहले 9 जजों के पास भेजा गया था यह मामाल
सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की पीठ ने 2011 में यानी तेरह साल पहले इस मामले को 9 जजों की संविधान पीठ के समक्ष भेजा था। न्यायमूर्ति एसएच कपाड़िया की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने कहा था कि मामले को 5 जजों की पीठ को भेजने के बजाए सीधे 9 जजों की पीठ को भेजा गया था। इसके पीछे प्रमुख वजह यह था कि प्रथम दृष्टया पश्चिम बंगाल राज्य बनाम केसोराम इंडस्ट्रीज लिमिटेड और अन्य के मामले में 5 जजों की पीठ द्वारा पारित फैसले और इंडिया सीमेंट लिमिटेड और अन्य बनाम तमिलनाडु राज्य और अन्य के फैसलों में 7 जजों के पीठ के फैसले में कुछ विरोधाभास दिखाई दिया। इंडिया सीमेंट लिमिटेड और तमिलनाडु सरकार के बीच विवाद यह था कि कंपनी ने तमिलनाडु में खनन का पट्टा हासिल किया था और राज्य सरकार को रॉयल्टी का भुगतान कर रहा था। इसके बाद राज्य सरकार ने इंडिया सीमेंट पर रॉयल्टी के अलावा एक उपकर लगा दिया, जिसने इस उपाय के खिलाफ मद्रास उच्च न्यायालय का रुख किया और तर्क दिया कि रॉयल्टी पर उपकर का मतलब रॉयल्टी पर कर है जो राज्य विधायिका के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। इस मामले में 1989 में 7 जजों की पीठ ने इंडिया सीमेंट के पक्ष में फैसला सुनाया था। इस फैसले में कहा गया था कि केंद्र एमएमडीआरए के तहत प्राथमिक प्राधिकरण है। साथ ही कहा गया था कि राज्य एमएमडीआरए के तहत रॉयल्टी ले सकते हैं, लेकिन खनन और खनिज विकास पर कोई और कर नहीं लगा सकते।
हालांकि, 2004 में, पश्चिम बंगाल राज्य और केसोराम इंडस्ट्रीज लिमिटेड के बीच भूमि और खनन गतिविधियों पर उपकर लगाने के एक अन्य विवाद की सुनवाई करते हुए पांच जजों की संविधान पीठ ने माना कि 1989 के फैसले में टाइपोग्राफिकल त्रुटि थी और रॉयल्टी कोई कर नहीं थी। इस फैसले में कहा गया था कि ‘रॉयल्टी एक कर है वाक्यांश को ‘रॉयल्टी पर उपकर एक कर है के रूप में पढ़ा जाना चाहिए और 1989 के फैसले में कहा गया था कि रॉयल्टी कोई कर नहीं है। इस विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कुल 86 याचिकाएं दाखिल की गई थी।
दलीलें
केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने संविधान पीठ को बताया था कि खानों और खनिजों पर कर लगाने के संबंध में केंद्र के पास सर्वोच्च शक्तियां हैं। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी पीठ से कहा था कि खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम (एमएमडीआरए) की पूरी संरचना खनिजों पर कर लगाने के लिए राज्यों की विधायी शक्ति सीमित है। उन्होंने पीठ से कहा था कि कानून के तहत, केंद्र सरकार के खान और खनिजों पर कर लगाने और रॉयल्टी तय करने की शक्तियां है।
दूसरी तरफ याचिकाकर्ता राज्यों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी व अन्य ने संविधान पीठ से कहा था कि रॉयल्टी कोई कर नहीं है और राज्यों को राज्य सूची की प्रविष्टि 49 और 50 के आधार पर खानों और खनिजों पर कर लगाने का अधिकार है। प्रविष्टि 49 के तहत, राज्यों को भूमि और भवनों पर कर लगाने का अधिकार है, जबकि प्रविष्टि 50 राज्यों को खनिज विकास से संबंधित संसद द्वारा कानून द्वारा लगाए गए किसी भी प्रतिबंध के अधीन खनिज अधिकारों पर कर लगाने की अनुमति देती है। सुप्रीम कोर्ट ने 9 जजों की पीठ इस जटिल कानूनी सवालों पर 27 फरवरी 2024 को सुनवाई शुरू की थी क्योंकि इस मुद्दे पर संविधान पीठ के दो परस्पर विरोधी निर्णय थे। रॉयल्टी वह भुगतान है जो उपयोगकर्ता पक्ष बौद्धिक संपदा या अचल संपत्ति परिसंपत्ति के मालिक को करता है।
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