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शहर की प्रमुख शिक्षण संस्थाएं भी पर्यावरण संरक्षण और हरियाली के लिए खासे प्रयास कर रही हैं। 150 साल से भी अधिक पुराने डेली कॉलेज में पिछले 6 साल में 90 हजार नए पेड़ तैयार किए गए हैं। नए पौधे लगाने के साथ ही उनकी देखभाल भी की जा रही है। इसी तरह शहर के
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यह है जापान की मियावाकी पद्धति
पेड़ों के घने जंगल बनाने की मियावाकी तकनीक जापान की है। इसे डेंस प्लांटेशन भी कहा जाता है। इस तकनीक में एक मीटर गहरे गड्ढे खोदे जाते हैं और पौधे दो-दो फीट की दूरी पर लगाए जाते हैं। सामान्य तरीके से लगाए जाने वाले पौधे एक साल में चार फीट तक ही बढ़ पाते हैं, जबकि मियावाकी पद्धति से लगाए गए पौधे एक साल में 10 से 12 फीट तक बढ़ जाते हैं। मियावाकी पद्धति से रोपे गए पौधे 90-92 प्रतिशत तक जीवित रहते हैं।
एसजीएसआईटीएस : विलुप्त हो चुकी प्रजातियों के 1 एकड़ में पौधे लगाए, सभी लहलहाए
श्री गोविंदराम सेकसरिया प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान (एसजीएसआईटीएस) में विलुप्त हो चुकी 65 प्रजातियों के 8 हजार से अधिक पौधे पिछले दिनों लगाए गए हैं। यहां साधारण प्रजातियों के अलावा सोनपाटा, गरुड़, कुंभी गाबाड़ी, काला शीशम, पलाश, धानकट, अंजान, टेंसा, हल्दू, कुसुम जैसी विलुप्त प्रजाति के पौधे हैं। 30 एकड़ के कॉलेज परिसर में 1 एकड़ में मियावाकी पद्धति से फॉरेस्ट तैयार किया गया है। 8 एकड़ ओपन स्पेस में 1 लाख पेड़-पौधे हैं। क्षेत्र का भूजल स्तर बेहतर रखने के लिए परिसर में 15 रिचार्जिंग पिट हैं। ग्रे वाटर साफ करने के लिए एसटीपी है। पौधों की अधिकता के चलते कॉलेज और आसपास का एयर क्वालिटी इंडेक्स भी 60 से 70 के बीच रहता है।
डेली कॉलेज : पांच तालाब, 25 रिर्चाजिंग पिट भी
डेली कॉलेज शहर के बड़े ऑक्सीजन जोन के रूप में डेवलप हो गया है। 118 एकड़ में फैले काॅलेज के अधिकांश हिस्से में हरियाली है। पिछले 6 साल में यहां करीब 90 हजार नए पौधे लगाए गए हैं। पेड़-पौधे लगने के साथ ही जल संरक्षण के लिए भी खासे प्रयास किए गए हैं। कॉलेज में 5 छोटे तालाब बनाए गए हैं। 25 से अधिक रिर्चाजिंग पिट हैं। ग्रे वाटर को साफ करने के लिए एसटीपी है। मियावाकी पद्धति से करीब 30 हजार पौधे रोपे गए थे, जो मिनी फॉरेस्ट के रूप में तैयार हो गया । इसी तरह पुलिस ट्रेनिंग स्कूल में भी दो मियावाकी फॉरेस्ट हैं। एक में पांच हजार और दूसरे में तीन हजार पेड़ हैं।
रालामंडल : 9 साल पहले पहल की और बना दी पेड़ों की दीवार
बायपास से लगे रालामंडल अभ्यारण में सबसे पहले मियावाकी पद्धति से पौधारोपण 2015 में किया गया था। इसके अलावा पहाड़ी के निचले हिस्से में कतारबद्ध पौधे लगाए थे, जिनसे अब उनकी दीवार सी बन गई है। बायपास से गुजरने वाले वाहनों की तेज आवाज और रात में हेडलाइट की रोशनी प्राणियों तक न पहुंचे, इसलिए यह किया गया था।
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