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मियां-बीवी के बीच मनमुटाव प्रतीकात्मक
– फोटो : अमर उजाला
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मियां-बीवी के बीच मनमुटाव तलाक और खुला की दहलीज पर पहुंच रहे हैं। शरई अदालत (दारुल कजा) में पहुंचने वाले 80 फीसदी मामले इसे से जुड़े हैं। 20 फीसदी अन्य मामले जायदाद और घरेलू झगड़े के हैं। अदालत से जुड़े लोगों का कहना है कि करीब पांच फीसदी लोग ऐसे भी होते हैं, जो शरई अदालत के फैसले को न मानकर कानूनी अदालत पहुंच जाते हैं।
अलीगढ़ के ऊपरकोट में वर्ष 2010 में शरई अदालत स्थापित की गई थी। शरई अदालत के काजी मुफ्ती आमिर समदानी ने बताया कि स्थापना के बाद से यहां 1400 मामले आपसी रजामंदी से हल हो चुके हैं। अभी 110 मामले लंबित हैं। उन्होंने कहा कि शरई अदालत में मियां-बीवी के रिश्ते को बचाए रखने पर जोर होता है। अदालत में जब कोई मामला होता है तो अदालत से पत्र प्रतिवादी के पास जाता है। पहले व दूसरे में वह हाजिर नहीं होता है तो तीसरे में जरूर हाजिर होता है। एक-दो अपवाद हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि वह कुरान और हदीस की रोशनी में वह सलाह देते हैं, फैसला नहीं। घर टूटने से बचाने की कोशिश होती है। इस सलाह-फैसले को वादी-प्रतिवादी माने न माने उसकी मर्जी है। कानूनी अदालत में जाने से मना भी नहीं करते।
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