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रामपुरकलां क्षेत्र के आदिवासी गांव में रहने वाली महिलाओं के प्रसव घर पर ही हो रहे हैं। इन गांव की प्रसूताओं को ले जाने के लिए जब एंबुलेंस को फोन लगाया जाता है तो वह भी इनसे पैसे मांगते हैं। शासन द्वारा प्रसूति सहायता का लाभ भी बहेरी, सिंगारदे की महिलाओं को प्रसव उपरांत नहीं दिया जा रहा है। इस कारण यह महिलाएं अस्पताल न जाते हुए घर पर ही प्रसव करा रहीं हैं।
यहां बता दें कि जून जुलाई में बहेरी गांव में तीन महिलाओं के प्रसव घर पर हुए, वहीं सिंगारदे गांव में एक महिला का प्रसव घर पर हुआ। उधर अस्पताल से प्रसूता को लाभ न मिलने के कारण परिजन प्रसूता को अस्पताल नहीं पहुंचा रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का इस ओर ध्यान नहीं होने के कारण आदिवासी क्षेत्र में प्रसुताओं के साथ गर्भ से जन्म लेते वाले बच्चों को संक्रमण का खतरा बना हुआ है। इतना ही नहीं स्वास्थ्य कार्यकर्ता जच्चा बच्चा का जरूरी टीकाकरण करने के साथ दवाएं उपलब्ध कराने भी बहेरी व सिंगार दे गांव नहीं पहुंच रहीं हैं।
^महिलाओं को अगर घर पर ही डिलीवरी हो गई है तो हम एंबुलेंस भेज कर उन्हें अस्पताल में एडमिट कर लेते हैं। जिससे उन्हें स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ भी मिल सके। इसके अलावा शासन द्वारा जो प्रसूता को लाभ दिया जाता है वह भी उन्हें मिल जाएगा। डॉ. राजेश शर्मा, ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर सबलगढ़।
पैसा नहीं था इसलिए घर पर कराई डिलीवरी गिरिजा पति जनरल आदिवासी निवासी बहेरी ने बताया कि 9 जून मंगलवार को रात 11.30 बजे गांव की महिला द्वारा मेरी घर पर डिलीवरी की गई। मुझे लड़का हुआ। अस्पताल में डॉक्टर के स्थान पर नर्स ही डिलीवरी करती हैं। डिलीवरी के बाद पैसे की मांग की जाती है। हमारे पास पैसा है नहीं इसलिए घर पर ही प्रसव करा लिया।
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