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Masoud Pezeshkian: पश्चिमी देशों के लिए सिरदर्द तो अरब देशों के हमदर्द ईरान को उसका नया राष्ट्रपति मिल गया है. नाम है मसूद पेजेशकियान, उन्होंने ईरान के कट्टरपंथी नेता सईद जलीली को राष्ट्रपति चुनाव में मात दे दी है. तो क्या अब ईरान के नए राष्ट्रपति अपने देश की उस छवि को बदल पाएंगे, जिसके खिलाफ अमेरिका से लेकर ब्रिटेन, फ्रांस और इजरायल तक हैं.
क्या ईरान की बदली सत्ता से ईरान और भारत के संबंधों पर कुछ खास असर पड़ने वाला है या फिर अयातुल्लाह खामेनेई के होते हुए ईरान में चाहे राष्ट्रपति जो भी हो जाए, कुछ भी बदलने वाला नहीं है. आखिर क्या है ईरान में नए राष्ट्रपति के आने के मायने, आइए इस पर डालते हैं एक नजर.
ईरान के दोस्तों से ज्यादा दुश्मन, वो भी ताकतवर
यूं तो दुनिया के करीब 165 देशों के साथ ईरान के राजनयिक संबंध हैं, लेकिन अरब देशों को छोड़ दिया जाए तो दुनिया का हर देश ईरान से पर्याप्त दूरी बनाए रखना चाहता है. इसकी वजह है ईरान के कट्टरपंथी नेता, जिनकी नीतियों ने दुनिया हर एक ताकतवर देश को अपना दुश्मन बना रखा है. अपने न्यूक्लियर प्रोग्राम की वजह से ईरान पश्चिमी देशों का प्रतिबंध अब भी झेल रहा है. इसकी वजह से इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड IMF हो या फिर एशियन डेवलपमेंट बैंक एडीबी या वर्ल्ड बैंक, कोई भी ईरान की मदद नहीं करता है. बाकी फिलिस्तीन में हमास को लेकर ईरान का जो रुख है और जैसे ईरान लेबनान के जरिए हमास का सपोर्ट कर रहा है, उससे इजरायल भी ईरान का दुश्मन है. तो ईरान एक ऐसा देश है, जिसके दोस्तों से ज्यादा दुश्मन हैं और ताकतवर दुश्मन हैं.
क्या ईरान के प्रति बदला दुनिया का नजरिया?
ऐसे में मसूद पेजेशकियान का ईरान का राष्ट्रपति बनना एक उम्मीद जैसा है, क्योंकि मसूद अपने विरोधी रहे सईद जलीली की तुलना में एक सुधारवादी नेता माने जाते हैं. अपने पूर्ववर्ती नेताओं और वर्तमान के प्रतिद्वंद्वी की तरह कट्टरपंथी नहीं हैं. इसी वजह से अपने चुनाव के दौरान भी पेजेशकियान बार-बार इस बात पर जोर देते रहे हैं कि वो पश्चिमी देशों के साथ बिगड़े संबंधों को फिर से बहाल करेंगे. ईरान अब भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काम कर रही संस्था एफएटीएफ यानी कि फाइनेंशियन एक्शन टास्क फोर्स का सदस्य नहीं है, जिससे पता चल पाए कि ईरान में टेरर फंडिग और मनी लॉन्ड्रिंग कैसे होती है. ऐसे में मसूद पेजेशकियान का ये कहना कि वो भी एफएटीएफ में शामिल होना चाहते हैं, ईरान के प्रति दुनिया का नजरिया बदलने की उम्मीद जगाता है.
हमास को लेकर ईरान का रुख पहले जैसा
बाकी पेजेशकियान के आने के बाद भी इजरायल और हमास के बीच की जंग खत्म नहीं होगी, क्योंकि इजरायल पर पेजेशकियान का रुख भी वही है, जो ईरान के दूसरे तमाम नेताओं का रहा है. हां, पेजेशकियान के आने के बाद से ईरान के अंदर कुछ बदलाव हो सकते हैं, जिनमें औरतों की आजादी सबसे प्रमुख है, क्योंकि ईरान में जब हिजाब को लेकर प्रदर्शन हो रहे थे तो पेजेशकियान ने कहा था कि हम अपनी धार्मिक मान्यताओं को ताकत के जरिए थोपना चाहते हैं, देश में जो भी हो रहा है उसके लिए मेरे साथ-साथ धार्मिक स्कॉलर और मस्जिदें, सब जिम्मेदार हैं.
सुप्रीम लीडर अभी भी अयातुल्लाह खामेनेई
लेकिन ये सब महज बातें हैं. क्योंकि ईरान में राष्ट्रपति बदला है सत्ता नहीं. भले ही ईरान के नए राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियान सुधारवादी हैं, वो पश्चिमी देशों से भी संबंध सुधारना चाहते हैं, ईरान के अंदर भी सुधार करना चाहते हैं, लेकिन ये सब तभी मुमकिन है, जब ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह खामेनेई चाहें. क्योंकि ईरान में राष्ट्रपति चाहे जो हो, सत्ता तो खामेनेई के ही हाथ में है. और जब तक खामेनेई हैं, राष्ट्रपति के हाथ बंधे हुए हैं और वो एक रबर स्टैंप से ज्यादा कुछ भी नहीं हैं. खुद पेजेशकियान भी इस सर्वोच्च सत्ता को चुनौती नहीं देना चाहते हैं और अपने चुनाव के दौरान भी वो ऐलान कर चुके हैं कि खामेनेई की बात ईरान के लिए पत्थर की लकीर है. लिहाजा ईरान में सत्ता परिवर्तन के बाद रातों-रात कोई क्रांतिकारी परिवर्तन हो जाएगा, इसकी उम्मीद करना बेमानी है.
भारत को हो सकता है क्या फायदा?
रही बात भारत की कि देश को ईरान में बदली हुई नई सत्ता से क्या उम्मीदें हैं तो इसकी बानगी खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ट्वीट में दिख चुकी है. उन्होंने मसूद पेजेशकियान को राष्ट्रपति चुने जाने की बधाई देते हुए कहा है कि हम अपने पुराने संबंधों की बेहतरी के लिए मिलकर काम करेंगे. बात करें कि भारत को ईरान से काम क्या-क्या है तो ईरान भारत को कच्चा तेल सप्लाई करता है. लेकिन जब से अमेरिका ने ईरान से न्यूक्लियर डील तोड़ी है, चाहकर भी भारत ईरान से तेल नहीं खरीद पा रहा है. ऐसे में अगर पेजेशकियान के कहने पर पश्चिमी देशों का रुख नरम होता है तो ईरान-भारत के बीच फिर से तेल-गैस की सप्लाई शुरू हो सकती है और इसकी वजह से भारत में तेल के दाम कम हो सकते हैं.
चाबहार पोर्ट से रिश्ते मजबूत होने की हुई शुरुआत
बाकी भारत तो ईरान के चाबहार पोर्ट को 10 साल के लिए अपने हाथ में ले ही चुका है. और भारत ने ये काम तब किया, जब अमेरिका समेत दुनिया के तमाम देश ईरान के खिलाफ थे. ऐसे में अब जब पेजेशकियान आए हैं, तो उम्मीद है पश्चिमी देशों के साथ रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलेगी और उसका फायदा भारत को भी होगा. बाकी जो इंटरनेशनल नॉर्थ-साऊथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर बन रहा है, भारत और ईरान दोनों ही उसके हिस्से हैं. करीब 7200 किमी लंबे इस प्रोजेक्ट में समुद्री मार्ग भी है, रेलवे भी है और सड़क भी है, जिससे भारत, ईरान, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप तक सामान की आवाजाही आसान हो जाएगी. इसलिए उम्मीद है कि पेजेशकियान के साथ भारत और ईरान के बीच नए कारोबारी रिश्ते भी शुरू होंगे, जो ईरान के कट्टरपंथी नेताओं के दबाव में या तो शुरू नहीं हो पा रहे थे या फिर उनपर काम नहीं हो रहा था.
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