अजित सिंह
ओबरा सोनभद्र। स्थानीय राम मन्दिर में चल रहे श्रीराम कथा के पांचवें दिन रविवार को श्रोताओं ने कथा का श्रावण किया। अंतराष्ट्रीय कथावाचक पं0 दिलीप कृष्ण जी महाराज ने विस्तृत वर्णन करते हुए कहा कि मां सीता का स्वयंवर पृथ्वी पर बड़ा अद्भुत था, जहां राजा जनक ने कई कई विधाओं में निपुण और बलशाली राजा महाराजाओं को अपनी पुत्री सीता से विवाह करने के पूर्व सशर्त धनुष तोड़ने को लेकर न्यौता दिया था लेकिन एक एक करके सारे सुरवीर परास्त होते गए। जिससे देख जनक हतोत्साहित होकर बोले लगता है वसुंधरा वीरों से खाली है मेरी बेटी के हांथ पीले नही हो पाएंगे मैं बड़ा बदनसीब हुं। इतना सुनते ही क्रोध से भरे लक्ष्मण ने कहा वीरों के पराक्रम को मत ललकारे अन्यथा स्थितियां और परिणाम कष्टकारक होगा, तभी गुरुदेव विश्वामित्र ने कहा शिष्य लक्ष्मण धैर्य रखो बैठ जाओ, लक्ष्मण ने कहा आपका आदेश हो तो गुरुदेव मैं अपनी शक्तियों को प्रस्तुत करूं। विश्वामित्र ने कहा लक्ष्मण मन शांत कर अपना स्थान ग्रहण करो। फिर गुरु की आज्ञा लेकर प्रभु श्री राम ने धनुष को तोड़ कर सीता से स्वयंवर किया। इस प्रफुल्लित दृश्य का अनुभव करते जनक सोचते हैं कि मेरी तो सारी परेशानी और चिंता पर विराम लग गया। जिसे देख तीनों लोकों से पुष्पवर्षा होने लगी, इस अलौकिक क्षण के साक्षी बने राजा और प्रजा। ऐसे में राजाराम को देख कर रावण का अहंकार सातवें आसमान पर पहुंच रहा था और इस घोर अपमान व हार को समेट नही पा रहा था। लेकिन इस पावन बेला में तपस्वी लंका नरेश रावण का तप धुएं की तरह उड़ गया। मानो रावण की आसुरी शक्तियां भगवान राम की दास हो गई हों। ऐसा मंजर देख कर सभी दंग थे, इतना पराक्रमी योद्धा जिसने एक बार में धनुष को तोड़ दिया जैसे कोई पुष्प की पंखुड़ियों को तोड़ता है। नतमस्तक जनक प्रश्नचित और मोहित हो गए ऐसे पुरुषोत्तम राम को दामाद के रूप में स्वीकार करके। कथा में मुख्य रूप से पूर्व चेयरमैन प्राणमति देवी, धुरंधर शर्मा, एसके चौबे, संजय बैसवार, पुष्पराज पाण्डेय, बृजेश पाण्डेय, दीपेश दीक्षित, विवेक मालवीय, अनुज त्रिपाठी, नीरज भाटिया, अरविन्द सोनी, समीर माली, रिजवान अहमद, रामयश पाण्डेय, नीलकांत तिवारी, आशीष तिवारी, मनोज पाठक, मनोज सिंह, पवन मिश्रा, राजकुमार यादव, अक्षय पाण्डेय, हरिओम सेठ, गीतांजली चौबे, रमा दुबे, उषा शर्मा, सरिता सिंह, पुष्पा दुबे इत्यादि श्रोतागण मौजूद रहे।