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ये बात राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के संयोजक हनुमान बेनीवाल ने खींवसर में कही थी। उपचुनावों के बीच राजस्थान के जाट नेताओं में जुबानी जंग छिड़ी हुई है। एक-दूसरे को नीचा दिखाने में व सियासी वजूद कमजोर करने की कोशिशों में कोई पीछे नहीं है। इसका सबूत है बयान के कुछ ही देर बाद कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा का पलटवार।
गोविन्द सिंह डोटासरा ने खींवसर में अपनी चुनावी रैली में बेनीवाल पर तंज कसते हुए कहा- बलदेव मिर्धा, रामनिवास मिर्धा, नाथूराम मिर्धा, वसुंधरा राजे, ज्योति मिर्धा, रिछपाल सिंह मिर्धा, परसराम मदेरणा, महिपाल मदेरणा, दिव्या मदेरणा, हरीश चौधरी, महेंद्र चौधरी, राजाराम मील, गोविन्द सिंह डोटासरा, नारायण सिंह, अशोक गहलोत, सचिन पायलट, उम्मेदाराम बेनीवाल, रामेश्वर डूडी, नारायण बेनीवाल और रेंवतराम डांगा। अरे भाई क्या ये सारे ही बेकार हो गए आपके लिए, इनमें से कोई तो भला होगा।’
डोटासरा ने जो नामों की लिस्ट गिनाई, इनमें सिर्फ 3 राजनेताओं वसुंधरा राजे, अशोक गहलोत और सचिन पायलट को छोड़कर बाकी सभी जाट नेताओं के नाम थे। डोटासरा ने ये नाम इसलिए गिनाए क्योंकि नागौर सांसद बेनीवाल इन सभी नेताओं पर समय-समय पर हमलावर होते रहे हैं।
दिव्या मदेरणा V/S हनुमान बेनीवाल इससे कुछ दिन पहले ओसियां की पूर्व विधायक दिव्या मदेरणा ने कहा था कि बेनीवाल ने मुझे हराने के लिए कई सभाएं कीं, आखिर मेरा क्या कसूर था? जब आप नेगेटिव पॉलिटिक्स करते हो और बुरा करते हो, तो फिर बुरा ही पल्ले आता है। इसलिए अब खींवसर उपचुनाव में बेनीवाल की हालत खराब है। चार-चार बजे तक उन्हें लोगों के पैर पकड़ने पड़ रहे हैं।
इस बयान के सामने आने के अगले दिन ही बेनीवाल ने अपने भाषण में दिव्या पर जोरदार हमला बोलते हुए कहा- मैं तो दुश्मनों की भी मदद करता हूं। मदेरणा की बेटी दिव्या को भी मैंने MLA बना दिया। जो मेरे लिए कहती फिर रही है कि 4 बजे हनुमान घूम रहा है। क्यों नहीं घूमूंगा? मैं क्या ओसियां में घूम रहा हूं। क्या मैं 4 बजे तेरे घर पर आया था, दरवाजा बजाया था? उन्होंने सीडी कांड को लेकर भी तंज किया।
इस हमले के बाद दिव्या मदेरणा ने बेनीवाल का वीडियो ट्वीट कर कहा- उन्हें बेहद अफ़सोस हो रहा है कि मैं ज़िंदा ही कैसे हूं। मैं भी समाज की बेटी हूं। बहन-बेटी सबकी सांझी होती है। इसलिए संपूर्ण किसान वर्ग से पूछना चाहती हूं कि मैंने ऐसा क्या गुनाह किया कि मुझे कुएं में गिरकर मर जाना चाहिए?
इस बयानबाजी से इतर खींवसर विधानसभा सीट पर बीजेपी के उपचुनाव प्रत्याशी रेंवतराम डांगा और नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल के बीच चल रही बयानबाजी तो इस स्तर पर पहुंच गई है कि उसे शब्दों में यहां बयान कर पाना भी मुमकिन नहीं है।
विवादों का पुराना है इतिहास
2018 : बेनीवाल और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी के काफिले पर पथराव 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले हनुमान बेनीवाल ने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी लॉन्च की। खींवसर, मेड़ता और भोपालगढ़ सीटों पर बेनीवाल की पार्टी के MLA बने थे।
इसी दौरान बाड़मेर के बायतु में आयोजित वीर तेजाजी और खेमाबाबा की जागरण में भाग लेने जा रहे सांसद बेनीवाल और पूर्व केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी के काफिले पर बायतु में पथराव हो गया था। बेनीवाल ने इसका आरोप प्रदेश सरकार में मंत्री और बाड़मेर के बड़े जाट नेता हरीश चौधरी और कांग्रेस समर्थकों पर लगाया था। इसके बाद तो दोनों ही नेताओं में तल्खियां बढ़ गईं।
हनुमान बेनीवाल की बढ़ती बयानबाजी ने कांग्रेस के बड़े जाट नेताओं को असहज कर दिया था। यही वजह थी कि हरीश चौधरी ने तत्कालीन सीएम गहलोत पर सीधे-सीधे हनुमान बेनीवाल व उनकी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी को राजस्थान में पनपाने और बड़े जाट नेताओं को ठिकाने लगवाने के आरोप लगा दिए थे। इसके बाद ज्योति मिर्धा ने भी बेनीवाल और गहलोत में सियासी सेटिंग के आरोप लगाकर कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया।
बाड़मेर के बायतु में पूर्व केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी की इसी कार पर पथराव हुआ था। तब गाड़ी में चौधरी के साथ हनुमान बेनीवाल भी बैठे थे।
2019 : सामने नहीं आई बेनीवाल-पूनियां की तल्खियां लोकसभा चुनाव 2019 में हनुमान बेनीवाल ने जाट नेता सतीश पूनिया के बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष रहते गठबंधन से नागौर सीट पर चुनाव लड़ा। पंचायतीराज चुनावों में सतीश पूनिया ने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी को छोड़कर अकेले ही चुनाव लड़ने का मन बना लिया। जानकार बताते हैं कि तब पूनिया भी बेनीवाल के निशाने पर आ गए थे। हालांकि दोनों के बीच खुलकर ज्यादा तल्खियां सामने नहीं आईं।
इसी दौर में पंचायत चुनाव में प्रचार के दौरान नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल और ओसियां MLA दिव्या मदेरणा के बीच बयानों के तीखे बाण भी चले थे। एक सभा में दिव्या मदेरणा ने RLP के चुनाव चिह्न बोतल को लेकर कहा था कि मदेरणा साहब कहते थे कि वोट सही जगह पर देना और निशाने पर देना, नहीं तो कुएं में डाल देना। अगर कोई बोतल लेकर नाचता है तो उसे समझा देना कि 90 फीट गहरा कुआं है, मिलेगा ही नहीं। बोतल को कुएं में डाल दो।
इसके बाद हनुमान बेनीवाल ने भी एक सभा में दिव्या मदेरणा के तंज पर कटाक्ष किया। उन्होंने कहा था कि- यह बोतल भंवरी थोड़ी है जो कुएं में डाल दोगे। ये बोतल ही थी जिसकी वजह से आप विधानसभा में चले गए। बोतल नहीं होती तो अता-पता ही नहीं लगता।
ये तस्वीर 2019 की है। बेनीवाल परिवार सहित पीएम मोदी से मिलने संसद भवन गए थे। बेनीवाल ने गठबंधन कर चुनाव लड़ा था।
2023 : ज्योति मिर्धा V/S हनुमान बेनीवाल साल 2023 के विधानसभा चुनाव में एक बार सियासी मोहरें चली गईं। ज्योति मिर्धा को हराने के लिए बेनीवाल ने अपनी पार्टी का कोई प्रत्याशी नागौर से नहीं उतारा। कांग्रेस प्रत्याशी हरेंद्र मिर्धा ये चुनाव जीत गए। बेनीवाल इसका श्रेय खुलकर ले रहे थे। वहीं, ओसियां में दिव्या मदेरणा के विरोधी बीजेपी प्रत्याशी भैराराम सियोल का खुलकर सपोर्ट किया। सियोल ने अपने भाषणों में भी कई बार ये बात कही थी कि उन्हें बेनीवाल का सपोर्ट था। दिव्या ये चुनाव हार गई और सियोल जीत गए।
बेनीवाल ने 2023 के चुनाव में हरीश चौधरी के सामने फिर उम्मेदाराम को टिकट देकर उनकी सियासी मुश्किलें बढ़ा दीं। चौधरी ये चुनाव हारते-हारते बचे थे। पोस्टल बैलेट काउंटिंग के बाद कुछ ही वोटों से जीत पाए थे। इन सबके बीच ज्योति मिर्धा ने भी बेनीवाल के खास रहे रेवंतराम डांगा के सहारे खींवसर में बड़ी चुनौती देकर पहली बार अपने सियासी कद का अहसास करा दिया था। पूरे राजस्थान में बेनीवाल की पार्टी का महज एक विधायक जीतकर आया। वो खुद हनुमान बेनीवाल थे, जो डांगा के सामने 2059 वोटों से बमुश्किल जीत पाए थे।
हनुमान बेनीवाल और मिर्धा परिवार हमेशा एक-दूसरे के राजनीतिक विरोधी रहे हैं।
2024 : लोकसभा, हरियाणा चुनाव और उपचुनाव लोकसभा चुनाव : आरएलपी के उम्मेदाराम बेनीवाल ने कांग्रेस का दामन थाम लिया। कभी बेनीवाल की पार्टी में प्रदेशाध्यक्ष रहे पुखराज गर्ग भी उन्हें छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए। हनुमान बेनीवाल कांग्रेस के साथ गठबंधन के प्रत्याशी घोषित हुए। अपने चुनाव प्रचार के बीच ही बेनीवाल ने कई बार बिना नाम लिए हरीश चौधरी और गोविन्द सिंह डोटासरा पर निशाने साधे। आरोप लगाए कि इन्होंने उन्हें और उनकी पार्टी को खत्म करने का प्रयास किया। कांग्रेस के साथ गठबंधन में देरी के पीछे भी यही थे। हालांकि बेनीवाल नागौर से कांग्रेस के समर्थन से सांसद बन गए थे।
हरियाणा विधानसभा चुनाव : बेनीवाल कांग्रेस के खिलाफ जनता जननायक पार्टी के प्रत्याशियों व कुछ निर्दलीय प्रत्याशियों के प्रचार करने पहुंचे। यहां उन्होंने कहा कि कांग्रेस के साथ उनका गठबंधन केंद्र में है, जो लोकसभा चुनावों में था। स्टेट के विधानसभा चुनावों में नहीं। कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने कहा कि उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था।
विधानसभा उपचुनाव : विधानसभा उप चुनाव आते-आते बेनीवाल ने एक बार फिर कांग्रेस से गठबंधन के प्रयास स्टार्ट कर दिए और यहां तक कह दिया कि वो पहले देखेंगे कि क्या कांग्रेस उनसे समझौता तोड़कर खींवसर में अपना प्रत्याशी उतारेगी इसी के बाद वो तय करेंगे कि उन्हें किसे चुनाव लड़ाना है?
इस बीच बेनीवाल ने एक भाषण में कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष डोटासरा पर तंज किया कि स्टेज पर गमछा हिलाने और तेजाजी के गाने पर डांस करने से कोई बड़ा नेता नहीं बन जाता है। डोटासरा ने इसका कोई जवाब तो नहीं दिया लेकिन बाद में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये कह कर उन्हें सियासी झटका जरूर दे दिया कि ‘बेनीवाल कहते हैं कि मेरा गठबंधन INDIA में है राजस्थान में नहीं, अब राजस्थान में कांग्रेस सभी सातों सीटों पर चुनाव लड़ेगी।’
इसके बाद जब कांग्रेस ने खींवसर में अपने प्रत्याशी रतन चौधरी के नाम का ऐलान कर दिया तो हनुमान बेनीवाल ने कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा और हरीश चौधरी पर उन्हें हराने के लिए बीजेपी से सेटिंग करने तक के आरोप लगा दिए। इसके बाद से जो सियासी जंग चल रही है वो अब सबके सामने है। इधर, ज्योति मिर्धा, रेवंतराम डांगा व हनुमान बेनीवाल के बीच भी सियासी बयानबाजी थमने का नाम नहीं ले रही है।
उपचुनाव में गठबंधन को लेकर सहमति नहीं बनी। इसके बाद से बेनीवाल और डोटासरा एक-दूसरे पर हमलावर हैं।
क्या जुबानी जंग खुद को बड़ा जाट नेता साबित करने के लिए है? पॉलिटिकल एक्सपर्ट नारायण बारेठ ने बताया कि पहले की तुलना में राजस्थान में जाट पॉलिटिक्स में काफी बदलाव आ गया है। पहले समाज के एक बड़े वर्ग यानि किसान वर्ग की पॉलिटिक्स होती थी। राजस्थान में एक समय रामनिवास मिर्धा, नाथूराम मिर्धा और परसराम मदेरणा तीनों ही जाट समाज के कद्दावर और मास लीडर थे। इन तीनों ही नेताओं में कई बार मतभेद रहे, लेकिन कभी भी एक-दूसरे के प्रति भाषा का स्तर नहीं गिरा। अब एक जाति के सहारे पूरे प्रदेश में दबदबा कायम करने के चक्कर में नेता अपना कद कम करते जा रहे हैं।
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