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23 जनवरी 1975, शाम करीब 3 बजे का वक्त। उस रोज मुहर्रम था। बिहार के दुमका जिले में मुसलमानों के एक गांव चिरूडीह में जुलूस निकालने और मातम मनाने की तैयारी चल रही थी। अब ये गांव झारखंड के जामताड़ा जिले में पड़ता है।
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गांव के पास ही एक बड़े मैदान में सैकड़ों आदिवासी जुटे थे। उनके हाथों में तीर-कमान और पारंपरिक हथियार थे। 31 साल का एक नौजवान उनकी अगुआई कर रहा था। मुद्दा था सूदखोरी का विरोध। तब महाजन, आदिवासियों को ब्याज पर रुपए-पैसे देते और ब्याज न चुकाने पर उनकी जमीनों पर कब्जा कर लेते थे।
थोड़ी देर बैठक के बाद उस नौजवान ने ऐलान किया- ‘हम महाजनों की फसल काटेंगे।’ डुगडुगी बजाते हुए आदिवासी फसल काटने निकल पड़े। जैसे ही यह खबर महाजनों तक पहुंची, चिरूडीह और आस-पास के गांवों में वे हथियार लेकर जमा होने लगे।
इसी बीच दौड़ते-भागते कुछ लोग आदिवासियों की सभा में पहुंचे और बताया कि हमारे गांव में एक समुदाय के लोगों ने आग लगा दी है, लूट-पाट कर रहे हैं। इतना सुनते ही आदिवासी चिरूडीह की तरफ दौड़ पड़े।
एक तरफ तीर-कमान लिए आदिवासी और दूसरी तरफ गोली-बंदूक के साथ महाजन। दोनों तरफ से हमले शुरू हो गए। घर के घर जलाए जाने लगे। चारों तरफ चीख पुकार मच गई। पुलिस हालात काबू करने के लिए घंटों मशक्कत करती रही। आखिरकार पुलिस ने गोली चला दी।
देर शाम जब हिंसा थमी तो 11 लाशें इधर-उधर बिखरी मिलीं। इनमें 9 मुसलमान थे। एक लाश नारायणपुर के महाराजा त्रिलोकी नारायण सिंह की थी, जबकि दूसरी लाश की पहचान नहीं हो पाई।
31 साल का वो नौजवान रातों-रात आदिवासियों का मसीहा बन गया। उसकी पूजा होने लगी। नौजवान का नाम था- शिबू सोरेन, जो आगे चलकर मनमोहन सरकार में कोयला मंत्री बने। तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री और आठ बार सांसद रहे, लेकिन उसी चिरूडीह कांड की वजह से उन्हें केंद्रीय मंत्री रहते हुए फरार भी होना पड़ा। जेल भी जाना पड़ा।
‘झारखंड के महाकांड’ सीरीज के पहले एपिसोड में ‘चिरूडीह कांड’ की कहानी जानने मैं रांची से करीब 220 किलोमीटर दूर जामताड़ा पहुंचा…
23 जनवरी 1975 को चिरूडीह कांड में 11 लोगों की हत्या हुई थी।
पक्की सड़क, दोनों तरफ लंबे और घने पेड़। जामताड़ा शहर से 20 किलोमीटर चलने के बाद रास्ते में नारायणपुर थाना मिला। नारायणपुर थाने में ही चिरूडीह कांड की FIR दर्ज हुई थी। यहां जामताड़ा के कुछ स्थानीय पत्रकार भी मेरे साथ हो लिए। चुनावी राज्य है, तो जाहिर है सियासत की चर्चा होगी ही।
फिलहाल जामताड़ा में कांग्रेस विधायक इरफान अंसारी और बीजेपी प्रत्याशी सीता सोरेन के बीच जुबानी जंग हॉट टॉपिक बना हुआ है। तीन बार विधायक रहीं सीता सोरेन, शिबू सोरेन की बड़ी बहू हैं। पहले झारखंड मुक्ति मोर्चा में थीं। इसी साल बीजेपी में शामिल हुई हैं। दुमका सीट से लोकसभा चुनाव लड़ी थीं, लेकिन झामुमो के नलिन सोरेन से हार गईं।
रास्ते में एक लंबी नदी मिलती है। ये रजिया नदी है। इसी नदी के किनारे चिरूडीह गांव बसा है। तीन-चार साल पहले ही नदी के ऊपर पुल बना है। यहां से करीब 200 मीटर की दूरी पर हरा-भरा लंबा-चौड़ा मैदान है। पहले यहां घना जंगल हुआ करता था। अब कुछ ही पेड़ बचे हैं। मैदान के तीन तरफ खेतों में धान और आलू की फसलें लगी हैं। जबकि एक तरफ यानी ठीक सामने चिरूडीह गांव है।
ये वही मैदान है, जो 50 साल पहले चिरूडीह कांड का गवाह बना था। इसी मैदान में शिबू सोरेन ने महाजनों के विरोध में सभा की थी। बाद में वहां मार-काट मच गई। मरने से पहले लखविंदर नाम के एक लड़के ने मजिस्ट्रेट के सामने अपने बयान में शिबू सोरेन का जिक्र किया था।
स्थानी पत्रकार पिंटू कुमार बताते हैं, ‘सरकारी आंकड़े में 11 लोगों की हत्या का जिक्र है, लेकिन तब बहुत लोग मारे गए थे। किसी के पैर में तीर लगा, तो किसी के सीने में। महाजन गोली चला रहे थे। ऐसा कैसे हो सकता है कि शिबू पक्ष से कोई मरा ही न हो। आज भी घर-गांव के बुजुर्ग कहते हैं तब रजिया नदी खून से लाल हो गई थी।’
उस घटना में आदिवासियों की जानें गईं या नहीं, इसका कोई ठोस सबूत नहीं है, लेकिन दबी जुबान लोग इतना जरूर कहते हैं कि आदिवासी मारे जाते तो शिबू सोरेन हीरो नहीं बन पाते।
चिरूडीह गांव के बगल से ही रजिया नदी गुजरती है। तब कई लोगों ने नदी में कूदकर अपनी जान बचाई थी।
मैदान से निकलकर हम चिरूडीह गांव की तरफ बढ़ गए। गांव के बीचों-बीच पक्की सड़क और दोनों तरफ कच्चे-अधपके घर। यहां करीब 150 घर हैं। इनमें 95% मुस्लिम परिवार हैं। इक्का-दुक्का घर दलितों के हैं।
2021-2022 में दलितों ने आरोप लगाया था कि गांव के दबंगों ने उनकी जमीन छीन ली है। घर से निकाल दिया है। जिसके बाद राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की टीम ने उनसे मुलाकात की थी।
लुंगी-बनियान पहने 58 साल के मोहम्मद मुमताज अंसारी को चिरूडीह नरसंहार याद तो है, लेकिन वे इस टॉपिक पर बात करने से बचते हैं। कहते हैं- ‘अभी चुनाव का समय है। 50 साल पुरानी घटना का जिक्र करने से कोई फायदा नहीं। आदिवासियों और मुस्लिमों के बीच राजनीतिक बखेड़ा खड़ा हो जाएगा। आप चुनाव बाद आना।’
मैंने पूछा- थोड़ा-बहुत तो आपको याद होगा ही कि क्या हुआ था।
हिचकिचाते हुए मुमताज कहते हैं- ‘मैं तब 8-9 साल का था। उन लोगों ने मेरे दो चाचा को मार डाला।’
उन लोगों ने क्यों हत्या की?
मेरे सवाल पर मुमताज कहते हैं- ‘आदिवासी हमें पंचपोनिया कहते थे। पंचपोनिया माने गैर-आदिवासी हिंदू और मुस्लिम। उनका कहना था कि हमने उनकी जमीनें हड़पी हैं, लेकिन ऐसा नहीं था। महाजन अपनी जगह सही थे। इसी बात को लेकर विवाद बढ़ गया। वो हमारे खेतों में धान काटने आ गए। उसके बाद इधर से भी हमारे चाचा और बाकी लोग मैदान की तरफ दौड़े। फिर तो मार-काट मच गई।’
चिरूडीह में करीब 150 घर हैं। इनमें 95% मुस्लिम परिवारों के हैं।
मुमताज के साथ खड़े करीब 60 साल के एक शख्स बताते हैं- ‘उस लड़ाई में नारायणपुर के महाराजा भी महाजनों की तरफ से आए थे। वे बंदूक से लगातार गोली चला रहे थे।
जब उनकी गोली खत्म हो गई तो लोगों ने कहा कि राजा साहब लौट जाओ। वर्ना मारे जाओगे, लेकिन राजा ने कहा कि वो क्षत्रिय हैं, लड़ाई से पीठ दिखाकर लौटेंगे तो लोग हसेंगे। राजा मारे गए। लोग कहते हैं कि उनके शरीर में दर्जनों तीर धंसे हुए थे।’
मैंने उन शख्स से नाम पूछा तो यह कहते हुए आगे बढ़ गए कि अभी चुनाव का माहौल है। मामला सीधा शिबू सोरेन से जुड़ा है। इस कांड के बारे में कोई बोलेगा नहीं।
हम थोड़ा आगे बढ़े। आधे-अधूरे प्लास्टर के एक घर के भीतर खटिया पर एक बुजुर्ग लेटे हुए थे। आवाज देकर उन्हें बाहर बुलाया। उन्होंने अपना नाम मोहम्मद सदीद बताया।
चिरूडीह हत्याकांड का जिक्र करते ही सदीद कहते हैं- ‘मैं छोटा था। घटना वाली जगह नहीं गया था, लेकिन लड़ाई शुरू हुई तो गांव में लोगों को दौड़ते-भागते देखा। उस लड़ाई में मेरे तीन चाचा मारे गए।
जब उनकी लाश घर के बाहर आई, तो मैंने देखा कि किसी की कमर कटी है तो किसी का कंधा। उन्हें देखते ही मैं बेहोश हो गया। जब होश आया तो देखा कि मांझी लोग घरों में आग लगाने के बाद डुगडुगी बजाते हुए ‘दिकुओ को बाहर करो’ का नारा लगाते हुए जा रहे थे।’ आदिवासी बाहरी लोगों को दिकू बुलाते हैं।
मोहम्मद सदीद के तीन चाचा चिरूडीह कांड में मारे गए थे।
सदीद के पास ही उनकी भाभी खड़ी हैं। वे बीच में ही बोल पड़ती हैं- ‘मेरे ससुर मारे गए। उनकी लाश रखी थी, लेकिन मैं उनका चेहरा भी नहीं देख पाई। हमारे यहां पर्दा प्रथा है, हम ससुर के सामने नहीं जाते थे। आज के जमाने में तो लोग इसका लिहाज नहीं करते, लेकिन हम बहुत कायदे में रहते थे।’
वे कहती हैं- ‘सिर्फ लोगों की जान नहीं गई, उन्होंने हमारे घरों में आग भी लगा दी थी। लड़ाई शुरू होने से पहले यहां से पुलिस की गाड़ी आ-जा रही थी। मैंने हाथ जोड़कर कहा कि बाबू लोग लड़ाई शांत करा दो। पुलिस वालों ने कहा कि तुम लोगों ने बिढ़नी के छाते में हाथ डाल दिया है और अब कह रहे हो कि शांत करा दो।’
इतना बोलते-बोलते वे नाराज भी हो जाती हैं। कहती हैं- ‘हमारे गांव के 9 लोग मारे गए। किसी को सरकार ने एक रुपया नहीं दिया। अब 50 साल बाद आप लोग पूछने आए हो कि हुआ क्या था।’
मैंने सदीद की भाभी से उनका नाम पूछा। इस पर उन्होंने कहा- ‘नाम जानकर क्या करेंगे। आप लोग खबर बनाकर चले जाएंगे और हम फंस जाएंगे।’
नाम पूछने पर मोहम्मद सदीद की भाभी मना करते हुए आगे बढ़ गईं।
इसी बीच गांव के कुछ लड़के जमा हो गए। उन्हें जैसे ही पता चला कि हम चिरूडीह कांड के बारे में बात कर रहे हैं, वो लोग विरोध करने लगे।
उन्होंने कहा- ‘जब शिबू सोरेन की सजा माफ हुई थी, तब हम लोग चीख-चीखकर कह रहे थे कि हमारे घरवालों की हत्या हुई है, तब किसी ने हमारी बात नहीं सुनी। चुनाव के वक्त हम आपको चिरूडीह कांड पर स्टोरी नहीं करने देंगे। गांव में एक आदमी भी इस पर नहीं बोलेगा। चुनाव बाद जो छापना होगा छापना, लेकिन अभी चिरूडीह का जिक्र किया तो अंजाम बहुत बुरा होगा।’
उन लड़कों ने फोन करके भीड़ जुटा ली। मेरा मोबाइल छीनकर देखने लगे कि मैंने क्या-क्या रिकॉर्ड किया है। हमारी कार को घेर लिया। वे लोग मोबाइल तोड़ने की धमकी दे रहे थे।
गांव के एक लड़के ने कहा- ‘हम विधायक इरफान अंसारी को फोन लगा रहे हैं। उनके आने के बाद ही आप लोगों को यहां से जाने देंगे। भागने की कोशिश करिएगा तो समझ लीजिए ये बहुत खतरनाक गांव है।’
इसी बीच मैंने जामताड़ा के विधायक इरफान अंसारी को फोन लगाया। उनसे बताया कि चिरूडीह में उनके समर्थकों ने हमारी गाड़ी घेर ली है। फोन स्पीकर पर रखकर गांव वालों से विधायक की बात भी कराई, लेकिन वे लोग गाड़ी छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए। विधायक ने गांव वालों से कहा- ‘देख लो कुछ रिकॉर्ड तो नहीं किया इन लोगों ने। मैं आ रहा हूं।’
थोड़ी देर बाद मैंने इरफान अंसारी को दोबारा फोन किया। इस बार विधायक ने स्पीकर पर गांव वालों से कहा कि इन्हें जाने दो, गाड़ी छोड़ दो।
इसके बाद हम चिरूडीह गांव से निकल गए। रास्ते में इरफान अंसारी ने दो बार फोन कर मिलने के लिए बुलाया। हालांकि मैं उनसे मिलने नहीं गया।
इसके बाद मैंने नारायणपुर के राज परिवार के मनमोहन सिंह को फोन किया। मनमोहन सिंह, त्रिलोकी नारायण सिंह के बेटे हैं, जिनकी चिरूडीह कांड में हत्या कर दी गई थी। मनमोहन सिंह भी चिरूडीह पर बोलने से बच रहे थे। कई बार फोन करने के बाद आखिरकार वे मिलने के लिए तैयार हुए।
मनमोहन के सामने जैसे ही कैमरा ऑन किया, उनके चेहरे के हाव-भाव बदल गए। कहने लगे- ‘मैं तब 10-12 साल का था। बस इतना याद है कि घर में पापा की लाश रखी थी। लोग रो रहे थे। पापा को किसने और क्यों मारा, मुझे नहीं मालूम।’
मैंने महाजनी प्रथा का जिक्र किया तो उन्होंने कहा- ‘मुझे उसके बारे में पता नहीं है। जितना पता था आपको बता दिया।’
नारायणपुर के महाराजा रहे त्रिलोकी नारायण सिंह के बेटे मनमोहन सिंह।
29 साल बाद कोर्ट ने वारंट जारी किया तो फरार हो गए शिबू सोरेन
मई 2004, मनमोहन सिंह की सरकार में शिबू सोरेन को कोयला मंत्री बनाया गया। करीब दो महीने बाद यानी 17 जुलाई को जामताड़ा की अदालत ने 1975 के चिरूडीह नरसंहार मामले में शिबू सोरेन के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी कर दिया।
शिबू सोरेन पर इस्तीफे का दबाव बढ़ने लगा। सदन में विपक्ष ने हंगामा कर दिया। इधर शिबू सोरेन अंडरग्राउंड हो गए। 21 जुलाई को रांची पुलिस दिल्ली में शिबू के सरकारी आवास पर पहुंची। हालांकि वे अपने आवास पर नहीं मिले। पुलिस ने उनके निजी सुरक्षा अधिकारी को वारंट सौंप दिया। उनके आवास के बाहर वारंट चस्पा भी कर दिया।
तीन दिन बाद यानी 24 जुलाई 2004 को शिबू सोरेन ने फैक्स के जरिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपना इस्तीफा भेज दिया। इसी बीच झारखंड हाईकोर्ट ने शिबू सोरेन को 2 अगस्त 2004 तक सरेंडर करने का आदेश दिया।
30 जुलाई 2004, शिबू सोरेन मीडिया के सामने आए। उन्होंने कहा- ‘मैं झारखंड हाईकोर्ट के आदेश का इंतजार कर रहा था। 2 अगस्त तक जामताड़ा अदालत में आत्मसमर्पण कर दूंगा।’
शिबू सोरेन करीब एक महीना तिहाड़ जेल में रहे। जमानत से छूटकर आने के बाद नवंबर 2004 में उन्हें दोबारा केंद्रीय कोयला मंत्री बनाया गया। तब मनमोहन सिंह ने कहा था- ‘शिबू सोरेन को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया था। अब मामले को सुलझा लिया गया है।’
30 जुलाई 2004, कोर्ट में सरेंडर करने से पहले रांची में अपने समर्थकों के साथ शिबू सोरेन।
मैंने जामताड़ा में एडवोकेट मनोज कुमार सिंह से भी मुलाकात की। मनोज, शिबू सोरेन पक्ष के वकील रहे हैं। उन्होंने चिरूडीह केस की फाइल दिखाई, जिसमें एफआईआर की कॉपी, आरोपियों के नाम, गवाहों के नाम और उनके बयान शामिल थे। कुछ डॉक्यूमेंट पर लिखे अक्षर पढ़ते बन रहे थे। जबकि कुछ डॉक्यूमेंट पर लिखे अक्षर मध्यम हो चुके थे, मिट चुके थे।
मनोज सिंह बताते हैं- ‘चिरूडीह हत्याकांड में 69 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया था। इसमें शिबू सोरेन का नाम भी था। चिरूडीह गांव से 10 लोगों ने गवाही दी। सभी मुस्लिम थे। वजह जो भी रही हो, किसी ने शिबू सोरेन का नाम नहीं लिया। सबूतों के अभाव में शिबू सोरेन बच गए।
कोर्ट में यह भी साबित नहीं हो पाया कि चिरूडीह कांड में वही शिबू सोरेन शामिल थे या उस नाम का कोई और। 11 राउंड फायरिंग पुलिस की तरफ से की गई थी। इसलिए यह भी साफ नहीं हो पाया कि मरने वाले पुलिस की गोली से मरे या दूसरे पक्ष के लोगों ने उन्हें मारा।’
मार्च 2008 में फास्ट ट्रैक कोर्ट ने चिरूडीह मामले में शिबू सोरेन को सबूतों की कमी का हवाला देते हुए बरी कर दिया। उस केस में अब तक 13 लोग बरी हो चुके हैं। 7 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। अभी सिर्फ एक ही व्यक्ति आजीवन कारावास की सजा काट रहा है। इसी साल उसे गिरफ्तार किया गया था। बाकी लोग या तो मर गए या फरार चल रहे हैं।
चिरूडीह कांड की FIR कॉपी।
पंचायत चुनाव हारने वाले शिबू ने 8 बार लोकसभा चुनाव जीता, तीन बार CM बने
जब भी कभी चिरूडीह कांड का जिक्र होगा तो शिबू सोरेन का नाम जरूर आएगा और जब कभी शिबू सोरेन का जिक्र होगा, तो चिरूडीह कांड की चर्चा जरूर होगी। दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। चिरूडीह कांड से ही शिबू सोरेन को पहचान मिली पूरे झारखंड में।
स्थानीय पत्रकार शंकर यादव बताते हैं- ‘चिरूडीह कांड के बाद शिबू सोरेन रातों-रात आदिवासियों के मसीहा बन गए। उन्हें ‘दिशोम गुरु’ कहा जाने लगा। संथाल परगना में दिशोम गुरु का मतलब ‘देश का गुरु’ होता है। उस घटना के बाद झारखंड में हर जगह जल, जंगल और जमीन की लड़ाई तेज हो गई। शिबू राजनीति में उतरे तो आदिवासी समाज ने उन्हें सिर-माथे बिठा लिया।’
1980 में शिबू सोरेन दुमका लोकसभा सीट से निर्दलीय चुनाव में उतरे। उनके चुनाव प्रचार के लिए तब हर आदिवासी परिवार से 250 ग्राम चावल और तीन रुपए लिए गए। शिबू सोरेन 3500 वोटों से जीत गए।
इस कांड से पहले शिबू सोरेन पंचायत चुनाव भी हार गए थे। शिबू आठ बार दुमका से लोकसभा सांसद चुने गए। तीन बार केंद्रीय मंत्री बने और तीन बार उन्होंने झारखंड की सत्ता भी संभाली। फिलहाल उनके बेटे राज्य के मुख्यमंत्री हैं। आज भी झारखंड में आदिवासियों के सबसे बड़े नेता शिबू सोरेन ही हैं।
16 नवंबर 2004, दिल्ली में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ शिबू सोरेन। जेल से जमानत पर बाहर आते ही शिबू को दोबारा कोयला मंत्री बनाया गया था।
आदिवासी बनाम मुस्लिम राजनीतिक मुद्दा न बने, इसलिए लोग चिरूडीह पर नहीं बोलते : आनंद कुमार, सीनियर जर्नलिस्ट
चिरूडीह कांड के मुद्दे पर गांव के लोग बोलने से क्यों हिचकते हैं, ये सवाल मैंने झारखंड के दो पत्रकारों से पूछा।
‘आज के दौर में झारखंड की राजनीति बदल गई है। अब आदिवासियों और महाजनों के बीच पहले जैसी तकरार नहीं है। दूसरी तरफ मुस्लिम और आदिवासी एक दूसरे के साथ घुल-मिल गए हैं। उन्हें लगता है कि चिरूडीह कांड पर बहस छिड़ी, तो आदिवासियों और मुस्लिमों के बीच विभाजन पैदा होगा, जिसका फायदा बीजेपी को मिलेगा। इसलिए कांग्रेस-झामुमो के समर्थक चाहते ही नहीं कि चिरूडीह कांड की चर्चा हो।’
सोरेन परिवार पावरफुल है, इसलिए कुछ भी बोलने से बचते है लोग- शंकर यादव, स्थानीय पत्रकार
‘शिबू सोरेन का परिवार काफी पावरफुल है। शिबू सोरेन पहले सांसद-मंत्री बने फिर झारखंड के मुख्यमंत्री रहे। अभी उनके बेटे हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री हैं। चिरूडीह कांड में उनका नाम आया था। उन्हें इस्तीफा भी देना पड़ा था। अभी जामताड़ा में कांग्रेस के विधायक हैं, जिनका सोरेन की पार्टी से गठबंधन है। दबाव के चलते ही पीड़ित पक्ष के कई लोग गवाही से मुकर गए थे।’
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झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने पहला चुनाव काॅलेज में रहने के दौरान सोरेन परिवार की सिक्योर और पारंपरिक सीट दुमका से लड़ा था। इस दौरान जेएमएम के वफादार स्टीफन मरांडी को टिकट नहीं मिला वो निर्दलीय लड़े।
हेमंत न सिर्फ चुनाव हारे बल्कि तीसरे नंबर पर थे। जब दूसरी बार हेमंत ने दुमका से चुनाव लड़ा तो हेमंत चुनाव जीते और स्टीफन तीसरे नंबर थे। बड़े भाई की मौत के बाद अचानक इंजीनियरिंग छोड़कर राजनीति में आए हेमंत सोरेन की कहानी। पूरी खबर पढ़िए…
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