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खूंटी में लोकसभा सीट पर कांग्रेस और दोनों विधानसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा है। मुंडा समुदाय के वोटर ही तय करते हैं कि यहां का जनप्रतिनिधि कौन होगा। दोनों सीटों का नेचर लगभग एक समान है। भाजपा और झामुमो के बीच कड़ी टक्कर की स्थिति दिख रही है। तोरपा में
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खूंटी जिले में दो विधानसभा सीटें हैं। खूंटी और तोरपा। दोनों अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित हैं। मुंडा बहुल खूंटी राज्य का एकमात्र ऐसा जिला है, जहां लोकसभा और विधानसभा सीटें एसटी आरक्षित हैं। अभी लोकसभा सीट पर कांग्रेस और दोनों विधानसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा है।
खूंटी कुछ साल पहले पत्थलगड़ी गतिविधियों के कारण चर्चा में रहा था। चर्च और सरना से जुड़े आदिवासी संगठनों के लिए यह प्रयोगशाला भी माना जाता रहा है। खूंटी विद्रोह की भूमि रही है। भगवान बिरसा मुंडा की जमीन। खुंटकट्टी गांवों से उपजा नाम आज आदिवासी शिनाख्त की मुहर है। यहां से उठने वाली हवा गुमला, सिमडेगा तक को अपने आगोश में ले लेती है। बतौर सांसद कड़िया मुंडा ने इस क्षेत्र में 1989 में भाजपा का झंडा गाड़ा। लंबे समय तक खूंटी और कड़िया एक दोनों के पर्याय बन गए। ‘लाख’ यहां के जंगलों का प्रमुख उत्पाद है। पलाश, कुसुम और बेर के पेड़ों की टहनियों पर केरिया लक्का नन्हा सा कीट उगता है। लाख की माफिक यहां की राजनीति भी समय के हिसाब से पिघलती और सांचे में ढलती है। भाजपा के कद्दावर नेता कड़िया मुंडा का इस क्षेत्र में विशेष प्रभाव रहा है। लंबे समय तक लोकसभा चुनावों में वे जीतते रहे है। प्रथम चरण में 13 नवंबर को दोनों सीट पर मतदान होना है। चुनावी गतिविधि तेज हो गई हैं। वोटरों को अपनी ओर आकर्षित करने का सिलसिला तेज होता जा रहा है। दोनों सीटों के नेचर लगभग समान है। दोनों सीटों पर भाजपा और झामुमो के बीच कड़ी टक्कर की स्थिति दिख रही है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी कालीचरण मुंडा की जीत से झामुमो कार्यकर्ता उत्साहित दिख रहे हैं।
खूंटी : भाजपा ने नीलकंठ पर छठी बार जताया भरोसा
झारखंड गठन के बाद से ही भाजपा के नीलकंठ सिंह खूंटी से विधायक हंै। भाजपा ने लगातार छठी बार उनपर भरोसा जताया है। 2019 के चुनाव में नीलकंठ सने झामुमो के सुशील पाहन को 26,327 मतों से हराया था। इसबार झामुमो के राम सूर्य मुंडा को मौका दिया है। नीलकंठ मंत्री और विधायक रहते क्षेत्र में हुए विकास कार्य की याद दिला रहे हैं। पर, उनके लिए परेशानी की बात है कि जहां अबतक विकास की किरण नहीं पहुंची हैं, वहां एंटी इनकंबेंसी की बातें भी हो रही हंै। नीलकंठ के बड़े भाई कालीचरण मुंडा खूंटी से सांसद हैं। ऐसे में इंडिया के कार्यकर्ता लोगों को समझाने में जुटे हैं कि एक ही परिवार से सांसद -विधायक क्षेत्र के लिए ठीक नहीं है। नीलकंठ के सामने झामुमो प्रत्याशी राम सूर्य मुंडा पहली बार चुनाव मैदान में उतरे हैं। झामुमो ने नामांकन का समय खत्म होने के दो दिन पहले प्रत्याशी स्नेहलता कंडुलना को बदल कर राम सूर्य को उतारा है। इस कारण उन्हें और झामुमो को कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। स्नेहलता कंडुलना की शादी गैरआदिवासी साहू परिवार में हुआ है। इस कारण झामुमो ने टिकट वापस ले लिया।
खूंटी: राज्य का एकमात्र जिला जहां लोकसभा और विधानसभा की सभी सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित
जातीय समीकरण
जातीय समीकरण
झामुमो : सुदीप गुड़िया
झामुमो : राम सूर्य मुंडा
भाजपा : कोचे मुंडा
भाजपा: नीलकंठ सिंह मुंडा
तोरपा विधानसभा सीट में भी आदिवासियों का विशेष प्रभाव है। इस बार 13 उम्मीदवारों ने नामांकन किया है। तोरपा में भी झामुमो और भाजपा के बीच कड़ा मुकाबला है। विधायक कोचे मुंडा के सामने झामुमो के सुदीप गुड़िया हैं। पिछले चुनाव में भी यही दोनों आमने-सामने थे। 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के कोचे मुंडा ने सुदीप गुड़िया को 9,630 वोट से हराया था। वर्ष 2000 और 2005 में कोचे मुंडा की जीत हुई थी। इसके बाद 2009 और 2014 में झामुमो के टिकट पर नक्सली पृष्ठभूमि के पॉलिस सुरीन विधायक बने थे। 2019 में झामुमो ने उन्हें प्रत्याशी नहीं बनाया था। वह निर्दलीय लड़े। 19,234 वोट मिले। सुदीप गुड़िया की 9,630 वोट स हार हुई थी। इस बार ये झामुमो के पक्ष में जा सकते हंै। मिशनरी और आदिवासी संगठन झामुमो के पक्ष में माहौल बनाने में जुटा है।
तोरपा : बदले समीकरण में कोचे को मिल सकती है चुनौती
मजबूत पक्ष : पिछले चुनाव के जैसे इसबार झामुमो का कोई बागी नहीं, भीतरघात की संभावना कम लग रही है।
कमजोर पक्ष : प्रतिद्वंद्वी के सामने अनुभव की कमी है। कार्यकर्ताओं की फौज कम है।
मजबूत पक्ष : भाजपा के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का फायदा, ईसाई आदिवासी संगठनों की एकजुटता
कमजोर पक्ष : अंतिम समय में झामुमो प्रत्याशी को बदलकर टिकट मिलना, प्रतिद्वंद्वी का अनुभव व कॉडर मजबूत होना।
मजबूत पक्ष : पीएम मोदी के चेहरे और भाजपा के मजबूत कैडर का लाभ मिलेगा। क्षेत्र में किए काम का फायदा मिलेगा।
कमजोर पक्ष : इंडिया के एकजुट होकर चुनाव लड़ने से मुश्किल हो सकती है।
मजबूत पक्ष : लंबे समय से भाजपा का गढ़ क्षेत्र रहना ,मजबूत संगठन और प्रचार में बड़े नेताओं का पहुंचना
कमजोर पक्ष : पांच बार विधायक रहने से एंटी इनकंबेंसी और भीतरघात का खतरा
हवा का रुख
भास्कर
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