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राजधानी दिल्ली के लोगों को सर्दी के पांच महीनों में 40 दिन भी साफ हवा नहीं मिलती है। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) की ओर से जारी रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2021-22 के विंटर सीजन में सबसे ज्यादा 38 दिन हवा साफ रही थी।
राजधानी के लोगों को सर्दी के पांच महीनों में 40 दिन भी साफ हवा नहीं मिलती है। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) की ओर से जारी रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2021-22 के विंटर सीजन में सबसे ज्यादा 38 दिन हवा साफ रही थी। वर्ष 2016-17 में सिर्फ आठ दिन हवा साफ थी। रिपोर्ट में प्रदूषण के स्तर का विश्लेषण किया गया।
डीपीसीसी के मुताबिक, अक्तूबर से फरवरी तक के समय में ज्यादातर दिनों में वायु गुणवत्ता सूचकांक 200 से ऊपर रहता है। मानकों के अनुसार, 200 से नीचे तक के सूचकांक को आमतौर पर साफ माना जाता है। आंकड़े बताते हैं कि पिछले आठ वर्षों में किसी भी साल ऐसा नहीं रहा जब जाड़े में 40 दिन वायु गुणवत्ता सूचकांक 200 से नीचे रहा हो।
दिल्ली में मानसून की वापसी के बाद अक्तूबर से फरवरी तक हवा में प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ जाता है। इस दौरान ज्यादातर दिनों में वायु गुणवत्ता खराब, बेहद खराब या फिर गंभीर श्रेणी में रहती है। खासतौर पर नवंबर और दिसंबर के में हवा में प्रदूषण का स्तर सबसे ज्यादा रहता है। इस दौरान हवा की रफ्तार बेहद धीमी होती है और तापमान कम होने के चलते प्रदूषक कण ज्यादा समय तक हवा में बने रहते हैं। वाहनों और पराली के धुएं के चलते स्मॉग बन जाता है, जो वायुमंडल पर ज्यादा देर तक छाया रहता है। इसके चलते दृश्यता का स्तर भी प्रभावित होता है।
कोविड-19 से ज्यादा हो सकती हैं मौतें: गुलेरिया
एम्स दिल्ली के पूर्व निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने बुधवार को चेतावनी दी कि वायु प्रदूषण से कोविड-19 से ज्यादा मौतें हो सकती हैं। हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021 में दुनिया में आठ मिलियन लोग वायु प्रदूषण के कारण मर गए। यह कोविड-19 के कारण मरने वालों की संख्या से अधिक है। डॉ. गुलेरिया ने कहा कि हम कोविड के बारे में चिंतित हैं, लेकिन वायु प्रदूषण के बारे में नहीं। वायु प्रदूषण फेफड़ों में अधिक सूजन पैदा करता है। श्वसन संबंधी समस्या और भी बदतर हो जाती है।
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