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प्रभात कुमार नई दिल्ली। दिल्ली-एनसीआर की हवा को दमघोंटू बनाने के लिए जिम्मेदार पराली जलाने पर रोक लगाने में विफल रहने पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार क
प्रभात कुमार नई दिल्ली।
दिल्ली-एनसीआर की हवा को दमघोंटू बनाने के लिए जिम्मेदार पराली जलाने पर रोक लगाने में विफल रहने पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पंजाब और हरियाणा सरकार को कड़ी फटकार लगाई। शीर्ष अदालत ने प्रदूषण के मसले पर दोनों राज्यों को असंवेदनशील बताते हुए कहा कि निर्देशों का उल्लंघन कर पराली जलाने वालों से महज जुर्माना वसूलने के बजाए, उन पर मुकदमा क्यों नहीं चलाया जा रहा है।
जस्टिस अभय एस. ओका, अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि ‘यह कोई राजनीतिक मसला नहीं है, यह सिर्फ वैधानिक निर्देशों का पालन करने के बारे में, यहां कोई राजनीतिक विचारधारा लागू नहीं होगा। पीठ ने यह टिप्पणी दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण कम करने के लिए पराली जलाने पर रोक लगाने के लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) द्वारा जारी निर्देश का पालन नहीं किए जाने पर दोनों राज्यों के मुख्य सचिवों को तलब करते हुए की है। पीठ ने हरियाणा और पंजाब के मुख्य सचिवों को अगली सुनवाई 23 अक्टूबर को निजी तौर पर पेश होकर यह बताने के लिए कहा है कि सीएक्यूएम द्वारा पराली जलाने पर रोक के लिए वर्ष 2021 से जारी निर्देशों का पालन क्यों नहीं हो रहा है।
जस्टिस ओका ने कहा कि ‘यह कोई राजनीतिक मसला नहीं है, यदि पंजाब और हरियाणा के मुख्य सचिव किसी के इशारे (कोर्ट राजनीतिक आकाओं के इशारे की बात कर रहे थे) पर काम कर रहे हैं तो हम उनके खिलाफ भी समन जारी करेंगे, जरूरत होने पर अवमानना की भी कार्रवाई करेंगे। उन्होंने कहा कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग का आदेश 3 साल से ज्यादा पुराना है, वायु प्रदूषण पैदा करने वाली समस्या दशकों से मौजूद है, लेकिन इसके बाद भी राज्य उपलब्ध वैधानिक ढांचे के बावजूद समाधान खोजने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम दोंनों राज्यों के मुख्य सचिव को अगली सुनवाई पर कोर्ट में बुला रहे हैं, उन्हें सारी बातों की जानकारी देंगे। दोनों राज्यों में पराली जलाने पर रोक के लिए कुछ नहीं किया गया, यह पूरी तरह से आदेश की अवहेलना है।
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा पराली जलाने वालों पर मुकदमा क्यों चला रहे हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने पराली जलाने पर रोक के आदेश का पालन नहीं होने पर दोनों राज्यों की खिंचाई करते हुए कहा कि अधिकारी इस बारे में आयोग के निर्देशों का पालन करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। इसे गंभीरता से लेते हुए पीठ ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) को रोक के बाद भी पराली जलाने वालों पर कार्रवाई करने में विफल रहने के लिए जिम्मेदार दोनों राज्यों के सरकारी अधिकारियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने का निर्देश दिया। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि निर्देशों का उल्लंघन किसी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। जस्टिस ओका ने दोनों राज्यों से कहा कि रोक के बाद भी पराली जलाई जा रही है, लेकिन थोड़ा बहुत जुर्माना वसूलने के अलावा पिछले तीन सालों में उल्लंघनकर्ताओं पर एक भी मुकदमा दर्ज नहीं किया गया। पीठ ने पंजाब सरकार के महाधिवक्ता गुरमिंदर सिंह से कहा कि आप आदेश की अनदेखी कर पराली जलाने वालों को बर्दाश्त क्यों कर रहे है। साथ ही, यह सवाल किया कि आप लोगों पर मुकदमा चलाने से क्यों कतराते हैं। जस्टिस ओका ने दोहराया कि ‘यह कोई राजनीतिक मामला नहीं है, यह आयोग के वैधानिक निर्देशों के क्रियान्वयन के बारे में है। राज्य सरकार के अधिकारियों की ओर से यह पूरी तरह से अवज्ञाकारी रवैया है। आप लोगों को उल्लंघन करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। आप केवल नाममात्र का जुर्माना लगा रहे हैं। उन्होंने हरियाणा सरकार के वकील से भी कहा कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) आपको पराली जलाने का स्थान बता रहा है और आप कहते हैं कि आग कहां लगाई जा रही है, इसकी जानकारी नहीं। हालांकि इस पर पंजाब के महाधिवक्ता गुरमिंदर सिंह ने पीठ को बताया कि जमीनी स्तर पर पराली जलाने के निर्देशों को लागू करना मुश्किल हो रहा है। उन्होंने कहा कि अधिकारियों ने खेतों में आग लगाने वाले किसानों के राजस्व रिकॉर्ड में लाल प्रविष्टियां कर दीं। उन्होंने कहा कि यदि मुकदमा दर्ज किया गया था कानून व्यवस्था बिगड़ सकता है। उन्होंने कहा कि पिछले साल हमारे अधिकारियों के साथ क्या हुआ था, यह किसी से छुपी नहीं है।
गलत बयानी करने पर पंजाब को फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार की ओर से कथित तौर पर अदालत में गलत बयान देने पर भी फटकार लगाई। पीठ ने राज्य सरकार के उस बयान पर आपत्ति जताई जिसमें कहा गया था कि उसने छोटे किसानों को ट्रैक्टर, ड्राइवर और ईंधन उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार को धन देने का प्रस्ताव दिया है। जबकि सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि पंजाब सरकार ने इस बारे में केंद्र सरकार के पास अब तक कोई प्रस्ताव नहीं दिया है। इस पर पंजाब सरकार ने कहा कि बुधवार को ही प्रस्ताव केंद्र को भेज देंगे।
दंतहीन बाघ है वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्देशों का पालन करने में विफल रहने पर वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग को भी आड़े हाथ लिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि ‘यह आयोग एक दंतहीन बाघ है जो बिना किसी कार्यान्वयन के सिर्फ निर्देश पारित करता है। पीठ ने आयोग के सदस्यों की योग्यता के बारे में भी सवाल उठाया। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी से आयोग के सदस्यों की योग्यता के बारे में सवाल पूछते हुए जस्टिस ओका ने कहा कि ‘हम सदस्यों और उनकी शैक्षणिक योग्यता का बहुत सम्मान करते हैं, लेकिन वे वायु प्रदूषण के क्षेत्र में योग्य या विशेषज्ञ नहीं हैं। इस पर जब एएसजी भाटी ने कहा कि सदस्यों में से एक मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का पूर्व अध्यक्ष है, तो जस्टिस ओका ने कहा कि आप जानते हैं कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कैसे काम करते हैं। हालांकि एएसजी ने जोर देकर कहा कि आयोग में प्रदूषण क्षेत्र के विशेषज्ञ शामिल हैं, जिन्हें कठोर प्रक्रिया के बाद नियुक्त किया जाता है। इस पर पीठ ने सुझाव दिया कि आयोग को वायु प्रदूषण के गंभीर मुद्दे को हल करने के लिए किसी विशेषज्ञ एजेंसी से जुड़ना चाहिए। साथ ही, पीठ ने राज्यों द्वारा निर्देशों का पालन सुनिश्चित करने के लिए आयोग की की योजनाओं के बारे में भी रिपोर्ट पेश करने को कहा है। पीठ ने आयोग को यह बताने के लिए कहा है कि निर्देशों पालन नहीं करने वाले राज्यों के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने जा रहे हैं।
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