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भारत में रेयर डिजीज़ (दुलर्भ बीमारियों) का इलाज एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा बन चुका है। यह बीमारियां दुर्लभ होने के कारण, इनका निदान और उपचार महंगा और जटिल होता है। इसके बावजूद, 2021 में केंद्र सरकार द्वारा लॉन्च की गई नेशनल रेयर डिज़ीज़
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क्या हैं रेयर डिजीज़? रेयर डिजीज़ वह बीमारियां होती हैं जो बहुत कम संख्या में लोगों को प्रभावित करती हैं, और अक्सर ये आनुवंशिक होती हैं। डॉ. रत्ना दुया पुरी, चेयरपर्सन, इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल जेनेटिक्स एंड जीनोमिक्स, सर गंगा राम अस्पताल, दिल्ली, के अनुसार, 80% रेयर डिजीज़ जेनेटिक होती हैं, यानि ये एक विशेष जीन या क्रोमोसोम में दोष के कारण होती हैं। विश्वभर में लगभग 3 मिलियन बच्चे और वयस्क इन बीमारियों से प्रभावित हैं, और इनमें से कई का जीवनभर उपचार आवश्यक होता है।
डॉ. पुरी ने बताया कि, “रेयर डिजीज़ की महंगी दवाइयों और उपचार प्रक्रियाओं के चलते अधिकतर परिवार अपनी क्षमता से बाहर होने के कारण इन्हें वहन नहीं कर सकते। यही वजह है कि सरकार की ओर से नीतियां बनाई जा रही हैं ताकि इन बीमारियों से प्रभावित मरीजों को उचित सहायता मिल सके।”
डॉ. माथुर, के अनुसार- आज बड़ा उद्देश्य दुर्लभ बीमारियों की पहचान और इलाज पर जागरूकता बढ़ाना है, विशेषकर उन बच्चों के लिए जो जन्म के समय सामान्य दिखते हैं, लेकिन बाद में लक्षण प्रकट होते हैं। भारत सरकार की 2021 में लागू हुई नेशनल रेयर डिजीज पॉलिसी के तहत, इन दुर्लभ बीमारियों का इलाज अब बेहतर हो रहा है। राजस्थान सरकार ने भी 2024 के बजट में मेटाबॉलिक्स और जेनेटिक्स विभाग के लिए उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना की घोषणा की है, जो इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।”
सरकार की पहल: 900 करोड़ का फंड सरकार ने रेयर डिजीज़ के इलाज के लिए 900 करोड़ रुपए की राशि आवंटित की है, जिसके तहत तीन प्रमुख श्रेणियों में इन बीमारियों का वर्गीकरण किया गया है:
- कम लागत वाले इलाज: इस श्रेणी में बोन मैरो ट्रांसप्लांट जैसे उपचार आते हैं, जो अब तक मुमकिन हैं और सस्ती दरों पर उपलब्ध हैं।
- लगातार उपचार की आवश्यकता वाली बीमारियाँ: कुछ रोगों में बच्चों को जीवनभर सपोर्टिंग थेरेपी या दवाइयाँ देनी पड़ती हैं, जैसे विशेष आहार या वैक्सीनेशन।
- महंगे इलाज वाले रोग: लायसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर (LSD), मस्कुलर डिस्ट्रॉफी जैसे DMD और SMA जैसी बीमारियों का इलाज बेहद महंगा होता है, विशेष रूप से जब जीन थेरेपी की जरूरत होती है, जिसकी कीमत करोड़ों में हो सकती है।
रेजिस्ट्रेशन और जागरूकता की पहल
सरकार ने देशभर में लगभग 20-30 अस्पतालों में रेयर डिजीज़ के लिए रजिस्टर स्थापित किया है, ताकि देशभर में इन रोगियों की सही संख्या का आकलन किया जा सके। इस डेटा का उपयोग भविष्य में उपचार योजनाओं के निर्माण में मदद करेगा। साथ ही, देश में अब कुछ दवाइयां स्थानीय स्तर पर भी निर्मित होने लगी हैं, जिससे उपचार की लागत कम होने की संभावना बढ़ी है।
चुनौतियां और सुधार की जरूरत रेयर डिज़ीज इंडिया फाउंडेशन डायरेक्टर को फाउंडर सौरभ सिंह ने बताया- दुर्लभ बीमारियों से जूझ रहे मरीजों के लिए नई उम्मीदें और बेहतर भविष्य की दिशा में कदम बढ़ाए जा रहे हैं। नीतियों में सुधार की जरूरत है, लेकिन जिस तरह से सरकार और चिकित्सा संस्थान मिलकर काम कर रहे हैं, उससे आने वाले समय में इन चुनौतियों का हल जरूर निकलेगा। हम सभी के प्रयास से हर मरीज को सही समय पर सहायता मिल सकेगी और चिकित्सा के क्षेत्र में एक नया अध्याय लिखा जाएगा।” उन्होंने बताया कि मेरा सुझाव है सरकार के लिए कि अगर उन्होंने जो यह प्रावधान सीएसआर की फंडिंग के बारे में बनाया है, अगर सरकार इसे दिशा दे और कहे कि हर कॉर्पोरेट को दुर्लभ बीमारियों के लिए इस फंड का उपयोग करना होगा, तब इन बच्चों का इलाज हो सकेगा। जैसे इन बीमारियों का नाम लें, तो जैसे हंटर सिंड्रोम के मरीज हैं, गौशर रोग के मरीज हैं, पॉम्पे रोग के मरीज हैं, या एमपीएस- I और II के, और भी कई बीमारियाँ हैं, जिनकी दवाई भारत में उपलब्ध है और उनसे बच्चे ठीक भी हो रहे हैं, और हमारे पास नैदानिक (क्लीनिकल) सबूत हैं। तो इन सब बच्चों को हम सीएसआर फंड के माध्यम से ठीक कर पाएंगे। इसके साथ, अगर इन बच्चों को समय पर दवाई उपलब्ध करा दी जाए, तो ये बच्चे ठीक भी हो सकते हैं और सरकार पर जो आर्थिक बोझ बढ़ता है, वह भी कम हो जाएगा।
आगे की राह रेयर डिजीज़ के उपचार में सुधार के लिए सरकार और स्वास्थ्य संगठनों के बीच और अधिक सहयोग की आवश्यकता है। साथ ही, राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर रेयर डिजीज़ के मरीजों के लिए विशेष केंद्रों की स्थापना की जा रही है, जिससे समय पर निदान और उपचार संभव हो सके। सरकार की ये पहल रेयर डिजीज़ से पीड़ित मरीजों और उनके परिवारों के लिए एक नई आशा है। हालांकि, मरीजों तक इस फंड और उपचार की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए नीतियों और उनकी क्रियान्वयन प्रक्रियाओं में अधिक पारदर्शिता और सरलता की आवश्यकता है।
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