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दिल्ली हाईकोर्ट ने सरकारी विभागों पर बेमतलब की मुकदमेबाजी को गंभीरता से लिया है। अदालत ने कहा है कि इस तरह के कार्य से सरकारी योजनाओं और राजस्व को नुकसान होता है, इसलिए ऐसे मुकदमे दायर करने वालों पर जुर्माना लगाना जरूरी है।
हाईकोर्ट ने ऐसे ही एक मामले में एक परिवार पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। यह जुर्माना दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को मुआवजा स्वरूप दिया जाएगा। जस्टिस धर्मेश शर्मा की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने डीडीए को छह साल तक एक ऐसे मामले में फंसाकर रखा जिसमें उसका दावा दाखिल करने का कोई अधिकार नहीं था। इस वजह से छह साल तक डीडीए का काम भी अधर में लटका रहा। याचिकाकर्ता ने जानबूझकर गलत तथ्य पेश किए और महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाया। इससे डीडीए को कई तरह का नुकसान हुआ। डीडीए का उक्त जमीन पर मालिकाना हक होने के बावजूद वह उस पर अपने निर्माण कार्य को जारी नहीं रख पाया। डीडीए को राजस्व का नुकसान भी उठाना पड़ा।
विस्थापित मुआवजा और पुनर्वास के तहत दी गई थी जमीन : यह मामला पाकिस्तान से विस्थापित होकर आए एक परिवार को लाजपत नगर इलाके में दी गई जमीन को लेकर उठा। याचिकाकर्ता के पिता भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद भारत आए। यहां उन्हें विस्थापित मुआवजा व पुनर्वास अधिनियम 1954 के तहत लाजपत नगर में प्लॉट आवंटित किया गया। याचिकाकर्ता के पिता की मौत हो चुकी है। विवाद तब उत्पन्न हुआ जब इस प्लॉट के बराबर में डीडीए ने वर्ष 2017 में बाउंड्री वॉल बनाने का काम शुरू किया। इस परिवार ने बाउंड्री वॉल बनाने से डीडीए को रोक दिया और डीडीए को मुकदमेबाजी में घसीट लिया, जबकि डीडीए को इस बाउंड्री वॉल के सहारे विकास कार्य करना था।
‘सीपी’ का इस्तेमाल चीप प्राइज के लिए किया था
याचिकाकर्ता का कहना था कि उनके मकान के दस्तावेज में स्पष्ट लिखा है कि उनका प्लॉट सीपी अर्थात कॉर्नर प्लॉट है, लेकिन जब इस जमीन के मूल दस्तावेज निकलवाए गए तो पाया गया कि 1958 में बनाए गए दस्तावेज में सीपी शब्द का इस्तेमाल चीप प्राइज के लिए किया गया था। याचिकाकर्ता के प्लॉट से सटी जमीन डीडीए की थी। डीडीए जमीन पर दीवार बनाकर अन्य निर्माण कार्य करना चाहता था, लेकिन वर्ष 2018 में याचिकाकर्ता ने डीडीए के निर्माण कार्य में बाधा डालकर उसे रुकवा दिया और अदालत में मुकदमा दायर कर दिया।
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