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महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में बापू का कमरा।
– फोटो : अमर उजाला
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ऐ वतन जब भी सर-ए-दश्त कोई फूल खिला, देख कर तेरे शहीदों की निशानी रोया…। यह शेर काशी के शहीदों पर एकदम मुफीद है। स्वतंत्रता दिवस ही नहीं हर दिन शहीदों की निशानियां यह याद दिलाती हैं कि आजादी की कीमत अमूल्य है।
शहर में आजादी और क्रांतिकारियों से जुड़ी निशानियां आज भी पर मौजूद हैं। बनारस कचहरी का लाल भवन जहां धानापुर कांड और अन्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के मुकदमे चले। बीएचयू भी भारत छोड़ो आंदोलन की यादें ताजा करता है। आंदोलन की पहली चिंगारी यहीं से फूटी थी।
कचहरी पर तिरंगा फहराने में कई शहीद हुए और काफी संख्या में लोग घायल हुए थे। वहीं डीएम भवन में ही चंद्रशेखर आजाद को बेंतों की सजा सुनाई गई थी।
रामकुंड पर अखाड़े में चंद्रशेखर आजाद कुश्ती लड़ा करते थे। सेंट्रल जेल में आजाद को 12 बेंतों की सजा सुनाई गई थी वहां स्मारक बनाहुआ है।
सेंट्रल जेल में क्रांतिकारियों को जेल में रखा गया था। यहां तमाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की सूची लगी है। शिवाला में अंग्रेजों की कब्रें क्रांतिकारियों की वीरता की निशानी हैं।
काशी विद्यापीठ के मानविकी संकाय में बापू का कमरा है।। शचींद्र नाथ सान्याल का मकान तो बिक गया है। वहीं, लाहिड़ी के मकान पर अवैध कब्जा है।
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